Saturday 5 November 2016

*****तुम हार रहे थे****

तुम हार रहे थे
पर तुम्हे गुमान था
शाख पर उलटे लटके
चमगादड़ो सा
जिन्हे न अपनी
परवाह होती है
न ही तुम्हारी
उन्हे गर्व होता है
अपने घुग्घू होने का
अपने मेहमानों का
जो आ जाते हैं
समय की हड़बड़ी में
जल्दी
और उनकी ही शाख पर
जल्द ही
उल्टा लटक
गुनगुनायेंगे
सांझ का गीत
और यह तब तक
जब तक भिंसार की
आहट न मिलेगी

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