Monday 14 November 2016

****बदहवास रुक्के****

बदहवास रुक्के
आबाद हुक्के
खुश होने को
सर अपने अभी भी
कुछ बाल हैं
क्योकि आज भी
गंजों के सर
ताज है
चाहत है अचरज
भरी
शौतन सी सामने
खड़ी
ग्वार बाजरे की
बात चली
भूतों की आवाज
मिली
माखन रोटी की
हाट सजी
ताली दै दै जे
भाजै
सोई सच्चा पूत
कहावै
अपनो को शीतलता
बांटे
औरन को ड्योढी
पर बांधै
तंत्र जंत्र सब कर
भय का भूत
चढावै
ऐसा कब तलक चलेगा
भाई
तब तक जब तक
मरै न
कलुवा की माई

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