प्रताड़ना के ताप में
उफनता हुआ संताप
विकरित हो गया तलाक में
मजहब के ठेकेदारी में
आजमाया सबने
अपने अपने अंदाज में
किसी ने दी दुहाइयां
किसी ने मजाक बनाया
स्थितियाँ थी
करती रहीं इंकलाब
इतने के बाद भी
बढ़ता रहा विवाद
कोई रसूल के नाम पर
कोई नफ़रत के नाम पर
हर कोई करता रहा
रोजगार
न उनसे था मतलब
न इनसे था कोई मतलब
किन्तु हमदर्द के नाम पर
वफा की बेचते रहे
खाँटी अल्फाज
मतलब साफ़ था
अपने अपने खुदाओं के
नाम पर शोरगुल करना
मात्र काम था उनका
स्त्री तो स्त्री थी
सहती रही
पुरुष का सभी अंदाज
प्रताड़ना के ताप में
उफ़नता हुआ संताप
Thursday 27 April 2017
**** प्रताड़ना के ताप में****
Thursday 13 April 2017
*****कुछ नगद कुछ उधार देखो*****
कुछ नकद कुछ उधार देखों
बाजार उदार देखो
रुपैय्या का कमाल देखो
मर्जी से अपनी आवै जाय देखो
सरे आम चौराहों में
बिकती भूख देखो
बेहद सस्ती बेहद मंदी
भेष बदलते तश्कर देखो
राव रंग के लश्कर में
धारदार अस्त्र शस्त्र ले
जड़ काटते पहरुआ देखो
सोती दुनिया के अंदाज निराले
भरते जिनसे कोष पोश देखो
लाभ कमाने के
रंगीले ढंग देखो
रोज रोज फंदे चूमते लोग
सुखा बाढ़ ओला से त्रस्त
माली हालत किसान की देखो
क्षण-क्षण ढुलकते
अश्कयुक्त नेत्र देखो
कारण जिनके होते कारे गात देखो
बीच बाजार होती लाज नीलाम देखो
बेईमानी का धंधा अपनाए
जेबकतरों की कतार देखो
टूटते आशने मिट्टी के देखो
अस्थिपंजर टूटे लढी के देखो
चमचमाती कार की रफ़्तार देखो
रोज-रोज बढ़ते रेट देखो
नोटों के बीच ओट देखो
भूखे नंगों की झेप देखो
बोरो में भरे नोटो की खेप देखो
आपस में लड़ते लोग देखो
स्वार्थ में रक्त रंजित
नफ़रत के खंजर देखो
रोटी के साथ फोटो खिचती
शानदार तश्वीर देखो
मुक्ति बेचता बाजार देखो
तीक्ष्ण है बहुत इसकी धार देखो
शवों की सवारी करते सवार देखो
नीले पीले रंग हजार देखो
अपनो का छुपा प्यार देखो
चूहे बिल्ली सी तकरार देखो
सावधान मानव !
समय रहते संभल जाओ
सीख लो तुम भी जीना
दूर होकर इनसे