उर पर आलोक अडोलित
चीर तम का सीना
ठहर जाती हैं
स्मृति की लाड़ियां
पल दो चार
चीख उठता है
दर्द
फिर से
खुद की रव में
ठहर गया हो
मानो क्षण कोई
प्राचीन
दिख रहा घना अंधेरा
द्वार पर आज भी
काश आकर देगी
सम्बल
किरण कोई
बुझते मन के
चराग को
Monday 31 October 2016
****उर पर आलोक आडोलित****
Saturday 29 October 2016
***** रची जा रही हैं साजिशें**** रची जा रही हैं साजिशें धरा में फैले उजाले के विरुद्ध खुशियों के विरुद्ध खामोशी के साथ खाली किये जा रहे हैं तेल से भरे मर्तबान जिससे छुपाया जा सके थोड़ा अंधेरा उजाले के विरुद्ध इन तमाम कोशिशों के बावजूद अभी शेष है आकांक्षाओं को बचाये रखने की एक छोटी सी मुहिम जो बिना रुके और थके लगातार जारी है
Thursday 27 October 2016
रात का गहरापन
रात का गहरापन
गुनगुना रहा था कानों में
जिन्दगी की कुछ रातों की
खामोश बाते
जो खप चुकी है
शोर मचाये बिना
दर्ज नहीं है जिनका
कोई लेखा जोखा
दुनिया के
बही खातों में
फिर भी !
उनका सुर्ख अन्दाज
बनेगा गवाह
हर उस पल
जो मददगार है
जीवन को महकाने में
गवाह है
हर उस शय का
जो डरा हुआ है
अपने ही साये के
स्यापे से
रात की खामोशी के
साथ
खुद भी हो जाता है
खामोश
रात का गहरापन
जैसे जैसे गहरायेगा
पूरा जहान मानो उसके
गम में शरीक हो
रहा होगा |
Saturday 22 October 2016
लिबास में छिपे हैं
लिबास में छिपे हैं
तुम्हारे प्रश्नों के जवाब
तुम्हारा कार्य
तुम्हारा व्यवहार
तुम्हारी आत्मीयता
तुम्हारे सदाचरण
यदि तुम सच में
खोजना चाहते हो
प्रश्नों के जवाब
तो तुम्हे प्रवेश
करना होगा
लिवास के भड़कीले
दरवाजों की
डेहरी के पार
और जाननी होगी
लिवास के पीछे की
गलीच सच्चाई
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