Monday 30 September 2019

****पुलों के ढहने से****

पुलों के ढहने पर
मुस्कुराते हैं
कुछ चेहरे
जैसे बादल को देख
मुस्कुराता है
ग्रीष्म के ताप से तपा हुआ
किसान
गर्मी और उमस से परेशान
आदमी
सूखे तालाबों में विहार को
उत्साहित खेचर
प्रफुल्लि हो उठता है
जन समुदाय
वैसे ही खुशी से झूम उठते हैं
कुछ चेहरे ।

पुलों के ढहने पर
सहम जाते हैं
उन पर भरोसा करने वाले लोग
वे उठाते हैं
पूरी ताकत के साथ
पुल के ढहने पर सवाल
क्योंकि पुलों के साथ
ढह जाते हैं
उनके विश्वास
पर कभी नहीं हो पाती
उजागर
पुलों पर धांधली की बात
क्योंकि जांच से भी ज्यादा
ताकतवर होते हैं
धांधली करने वाले लोग ।

पुलों के ढहने पर
मुस्कुराते हैं कुछ चेहरे
और जुट जाते हैं
नये पुलों के प्रस्ताव के लिए
सोंच से भी अधिक
तत्परता के साथ
पा लेते हैं
नये पुल के निर्माण का
प्रस्ताव
फिर से शुरू होता है
पुलों के बनाने बिगाड़ने का
कभी न खत्म होने वाला खेल I

Saturday 28 September 2019

****जंगल की ओर****

पेड़ों की बीनी गई
लकड़ियो के गट्ठर को ही
आजीविका बनाये हुए
लकड़ियों का गट्ठर ले लो की
मीठी आवाज में पुकारती हुई
लड़की चली जाती है
गाँव की ओर
कुछ लफाड़ियों की
तीरती निगाहों को अनदेखा करती हुई
लगातार तेज आवाज में
बताये जा रही थी
सूखी लकड़ियों के गट्ठर का दाम

वह समझती है
गट्ठर से अधिक सुगठित
शरीर को
ताकती निगाहों को
यद्यपि वह दे सकती थी
माकूल जवाब
बावजूद इसके वह चुप है
क्योंकि उसे पता है
भूख के लिए जवाब से
ज्यादा जरूरी
लकड़ियों का बेचा जाना ।

माटी के माधव की तरह वह
डउका लोगों को छोड़
बढ जाती है आगे 
और लकड़ियों को
औने पौने दाम बेचकर
लौट जाती है वापस
नये उत्साह और उमंग के साथ
निश्छल निस्सीम
सूखी लकड़ियों की तलाश में
जंगल की ओर ।

Sunday 15 September 2019

***फर्क नहीं होता ****

वे सच में तलेंगे
पकौड़े
क्योंकि उनकी सोच
अभी भी पकौड़े से आगे
नहीं बढ सकी है
सच मानों
पकौड़ा तलना कोई आसान
काम नहीं होता
किसी अंजान व्यक्ति के लिए
उसमें भी ध्यान रखना होता है
आँच की उच्चता और निम्नता का
और साथना पड़ता
चापलूसों की लपर लपर
करती जुबान को
और खड़ी करनी पड़ती हैं
अपनी हाँ में हाँ मिलाने वाले
वफादार कारिन्दों की पूरी फौज
जो तलने से लेकर
जायके तक के गणित का
विस्तार से कर सके बखान
वे सच में तलेंगे पकौड़े
आज बातों के
और कल जज्बातों के
क्योंकि सोच
और पकौड़े  तलने के
अंदाज में
बहुत अधिक फर्क नहीं होता

Friday 13 September 2019

*****बहुत मुश्किल होता है*****

बहुत मुश्किल होता है
अपने को निरपेक्ष
रख पाना
क्योंकि इसके लिए
साधना पड़ता स्वयं
मनाना पड़ता अपने आप को
तैयार करना होता है
खुद को निरपेक्ष भाव प्रति
किन्तु यह असम्भव नहीं होता
आप रख सकते हो
अपने आप को निरपेक्ष
राख में सुरक्षित आग की तरह
आप साध सकते हो
अपने आप को
प्रलोभनों से अलग रहकर
आप तैयार कर सकते हो
खुद को
दूसरों की पीड़ा की अनुभूति के द्वारा
हां आप बना सकते हो
असम्भव को सम्भव

Thursday 12 September 2019

*****विस्तारित होता जा रहा है****

विस्तारित होता जा रहा है
दिन ब दिन
खोखलेपन का बाजार
तरासे जा रहें हैं
बाज़ार के द्वारा
नये नये नमूने
जो आकर्षित कर सके
नई आवकों को

विस्तारित होता जा रहा है
समाज एक एक कस्ता हुआ
अपने अपने अंदाज में
क्षण प्रति क्षण
रिक्तता को ओढता हुआ
लगातार बढ़ रहा है
बाज़ार की ओर

विस्तारित होता जा रहा है
वेपरवाह समय की भांति
देश के कर्णधार युवा
झूठें दिखावे के साथ
हकीकतों को नज़रअंदाज कर
घटिया सामग्री से
निरन्तर बिछते जा रहे हैं
उसकी ओर

विस्तारित होता जा रहा है
समाज का प्रत्येक धड़ा
दरकते घाट सा
नदी में मिलने को बेताब
भुनाना चाहता  है
जिसे पूंजी का अदृश्य भेडियां
इसीलिए चकाचौध के बीच
दीमकों सा करता जा रहा है
उसे निरन्तर खोखला

विस्तारित होता जा रहा है
खोखलेपन का बाजार
जिसके रंगों को और अधिक
चटख बनाता है
आवारा पूंजी के हाथों
खेलता मीडिया
और उसके जोर जोर से
चीखतेे हरकारे
जिसे सहजता के साथ
स्वीकार कर लेती है
हमारी खोखली होती युवा पीढी
विस्तारित होते बाजार के सापेक्ष

Wednesday 11 September 2019

****काश वे जिन्दा होते****

काश वे जिन्दा होते
तो देखते
अपने द्वारा रोपी गई
कौमी नस्लों की लहलहाती
फसलें
जो बढ़ चुकीं है
कितनी आगे

काश वे विचारे होते
वंशवाद से ही फूटती हैं
किल्लियों सी नस्लें
और यह ही कर देती हैं तबाह
किसी भी सार्वभौम
सत्ता को

काश वे चेते होते
नस्ली होने से पूर्व
और छोड़ देते समय रहते
पीछे चलने वाला
अपना धइना
तब अपने आप खत्म हो जाता
हमेशा खटने का टंटा

काश वे समझे होते
नस्लवाद के हानि और  लाभ
और फिर विचार करते
तो शायद कल से वेहतर होती
आज की तस्वीर
तारीफों के कसीदों के
अतिरिक्त
यदि सुनी गई होती
अपनी भी आलोचना
तो बदल गये होते कब के हालात

काश वे जिन्दा होते
तो सुनते अपने नुमाइंदों की
गंधाती दोमुही बातें
जिनके लिए दो तरह की होती हैं
आदर्श की परिभाषाएं
एक खुद के लिए दूसरी दूसरों के लिए
शायद आज जीवित होते हुए भी
जिन्दा नहीं रहे
क्योंकि जिन्दा होने और मृत होने में
फर्क होता है चेतना का

Wednesday 4 September 2019

****अनायास ही****

अनायास ही बढ गई है बिक्री
सियासी गमझो
एक दो चार प्रतिशत नहीं
बल्कि पूरे के पूरे सौ प्रतिशत
नफे नुकसान के मद्देनज़र
जतायी जा रही है
स्टाक खत्म होने की आशंका
फिर भी बढ़ती जा रही
लगातार खरीदने वालों की भीड़
रिकार्ड किये जा रहें हैं
गमछों की बिक्री के आकड़े
और इन्ही के मुताबिक की जा रही
वोटों की गिनती
उधर मीडिया रिपोटर
पेश कर रहें है
बढती बिक्री के गगनचुम्बी आकड़े
जिसको सुनकर खुश हो रहे हैं
सियासी पण्डित
और इतरा रहें हैं अपने अपने
गमझों की
बिक्रीत संख्या को सुन सुनकर 
परन्तु जनता खामोश है
बिल्कुल अर्द्धरात्रि के शोर सी
सभी खुश हैं
गमछा विक्रेता, चन्द्रमा,
टीआरपी का खेल खेलते
न्यूज चैनल ,
एवं युद्ध जैसी विभीषिका में
चींखते चिल्लाते
उनके एंकर,
पार्टी प्रमुख व मन्त्री बनने की
आस संजोये चिफुलकार
यह खुशी अनायास नहीं है
बल्कि इन सभी ने स्वेच्छा से
खरीदी है
अपने अपने सट्टेबाजी से

Tuesday 3 September 2019

****वैशाखियों के सहारे****

जब वैशाखियों के सहारे
चलती हैं सत्ताएं
तब उधड़ती है
दावों प्रतिदावों की
परत दर परत
और खत्म कर दी जाती हैं
वैशाखियों के घुन से
कमजोर बनाई गई है
क्षमताएं
क्योंकि वैशाखियाँ
कभी भी नही चाहती
सुचारू रूप से कार्य
कर सकें
योग्यताएं और क्षमताएं
इसीलिए वे करती रहती हैं
हमेशा
क्षमताओं और योग्यताओं को
हतोत्साहित करने के
नियोजित कार्य
जिससे साधी जा सकें
अपेक्षाएं
इसीलिए वे गढती हैं
मनगढन्त नियामक परिभाषाएं
और थोपती है जबरिया
अयोग्यताओं और अक्षमताओं के
सहारे
और करती हैं योग्यताओं और
क्षमताओं को
कुचलने के हर सम्भव
प्रयास 
यद्यपि पाला बदलने में
माहिर होती हैं वैशाखियाँ
और समय बदलते के साथ ही
बदल लेती हैं
खूबसूरत अंदाज में अपना पाला
और खड़ी हो जाती  हैं
दुगने उत्साह के साथ
किसी अन्य पक्ष में
नये अवतार के रूप में