Wednesday 28 August 2019

****पहली दफ़ा****

हाँ ! कुछ ऐसा ही
पूँछा था
सिद्धार्थ ने अपने सारथी से
क्या मुझे भी
मरना पड़ेगा एक दिन ?
और एक कुशल शिक्षक की तरह
जवाब दिया था
सारथी ने
हाँ राजकुमार !
आपको भी मरना होगा
एक दिन इसी तरह
इसी एक वाक्य ने
बदल दिया था
राजकुमार सिद्धार्थ को
यती बुद्ध में
सच हो गई थी
कौडिन्य की वर्षों पूर्व की गई
भविष्यवाणी
जो उसने की थी
यूँ ही आदतन
हाँ कुछ ऐसा ही
पूँछा था
सिद्धार्थ ने अपने सारथी से
क्या मुझे भी
सहने होगे अनाम दुःख ?
सारथी के हाँ कहने पर
छोड़ दिया था
हमेशा हमेशा के लिए
राजत्व का मोह
और निकल पड़े थे खोज में
दुःख समाधान की
तब जाकर कहलाये थे बुद्ध
एवं संसार ने जाना था
पहली दफ़ा मज्झिम मार्ग का
सुगम रास्ता

Tuesday 27 August 2019

****निर्वात की तरह***

खबर बड़ी थी
वे बीमार थे
इलाज के लिए गये थे
चिकित्सालय
क्या यह सच था ?
या खबरनवीसों की कोई
कारस्तानी था
या फिर सोची समझी
साजिश थी
उन्हे बदनाम करने की
बताओ बताओ हाकिम
कुछ तो कहो
अपनी सफाई में
यही बोल दो
बीमार नहीं थे
तबियत कुछ नासाज थी
इसीलिए चले गये
हस्पताल तक
या यूँ ही कह दो
जरूरत पड़ गई थी
एम्स के फेफड़ों को
योग के फेफड़ों से निकलने वाली
आक्सीजन की
जाना पड़ा था झसी कारण
अचानक
पर नही समझ सके
खबरदाता अखबार
न ही समझ पाये हरकारे भरते
एंकरनुमा जीव
और कर दिया बीमारी का एलान
कि वे बीमार थे
भर्ती कराया गया है उन्हे
इलाज के लिए
बड़े अस्पताल के विशेष
सघन कक्ष में
अब तुम्ही बताओ भला
क्या जवाब देते वे ?
और क्यों देते ?
आखिर खबर बड़ी थी
चैनलों की भी तो बढ रही थी
टीआरपी
उन्हे चर्चा में बनाये रखने पर
इसीलिए वे चुप थे
बिल्कुल निर्वात की तरह

Sunday 25 August 2019

*****सर्प बनने के लिए*****

हाँ !
वे आदमी ही हैं
जो प्रयासरत हैं
विषधर बनने के लिए
इसके निमित
बाकायदा उन्होने शुरू कर दी हैं
तैयारियां
मसलन फुफकारने,
डसने और घिसलकर
चलने की
अब वे मानने लगें है
खुद को विषधारी
उनका यह मानना
कोई अचानक घटी घटना नहीं है
ना ही उनका फितूर है
बल्कि इसके पीछे
छिपा हुआ है
उनके विषधर बनने का
पूरा इतिहास
जो किये हुए है
आदमी से उनका
अलगाव
और वे आज भी हैं
अभिशप्त 
सर्प बनने के लिए

Saturday 24 August 2019

****दर्प से दीपित****

दर्प से दीपित होता था
जिनका भाल
सुर्ख लहू सा लाल
जिनके अधरों का रंग
जम चुकी है उनमे अब
समय की दूब
मुंह चिढा रही थी
रात्रि अवशेष
गायब थी अजनबियों सी
होठो पर तिरती
वह मुस्कान
सोया था
सदा सदा के लिए
यहीं कहीं पर
वह चतुर किसान
छीनी जा चुकी थीं जिससे
रसूख की
मखमली चादरें
कितना बेपरवाह निकला
समय का सारथी
नहीं कर सका रक्षित
निढाल पड़ने से पूर्व
अपने रथी को

**** मौन****

देश सारा मौन है
आखिर वह कौन है
देता वक्त जिसकी गवाही
हुक्म नहीं फरमान है
राष्ट्र सारा मौन है
आखिर वह कौन है
बेचता है सब कुछ
धर्म,ईमान,और मान
कहता फिर भी
आरोप सारे कौन हैं
पूंजी के रथ पर सवार
वक्र दृष्टि दंगा करती
सौ सौ प्याले गरल उगलती
चमन के अमन में खलल उसका
मधु के छत्ते से मधू लुटाता
ईमान धरम की बातें करता
तुम्ही बताओ मदारियों सा
वह कौन
क्योंकि उत्तर भी इसका मौन है ।

Thursday 22 August 2019

****निहायत जरूरी है***

आदेशित कर दो
तिजारती शब्दों को
क्योंकि यह माकूल समय नहीं है
धूर्तों की धूर्तता के लिए
करवा दो शब्दों की मुनादी
कि वापस लौट जायें
दरबों की ओर
क्योंकि फिराक में बैठे हैं
घुसपैठ की
बहुत से घुसपैठिये
जो घूम रहें हैं
बेखौफ
उनके वकतव्यों एवं हाव भाव से
समझी जा सकती है
उनकी पक्षधरता
अनदेखा कर दिया गया है
श्रम और उसका महत्व
अब खोजी जाने लगीं है
आकाश में तिरते स्वप्नों में
मनुष्य होने की समस्त
सम्भावनाएं
फन्दों में झूलती लाशों के
जेहन में भरी जा रहीं हैं
भ्रमित करने वाली
भ्रामक कल्पनाएं
जिससे झुठलाई जा सकें
कराहती आवाजों की झिर्रियां
अब इन पर सोचना
विचार व्यक्त करना प्रतिबन्धित है
जिन पर सोचना और विचार करना
आता है संगीन
अपराध की श्रेणी में
जिसे क्षमा किया जाना
मानवता के प्रति घोर अन्याय है
देशहित मे
जिसका रोका जाना
निहायत जरूरी है




Saturday 17 August 2019

**** कुछ तो रहा होगा*****

कुछ तो रहा होगा
उनका मकसद
यूँ छुपे हुए रहने का
यद्यपि दिन प्रति दिन
वे खोते जा रहें हैं
विश्वास
उनका यूँ बार बार
आ धमकना
आगाह करता है
खतरे में है उनका वजूद
और मुश्किल में हैं उनकी
अंस्मिता
जिसकी जद में आ चुकी है
ओढी दसाई उनकी हठधर्मिता
और तुर्रा बना उनका अहम
अबोल होने के बाद भी
बहुत कुछ कहते हैं
चहलकदमी के कारण निर्मित हुए
उनके पैरों के निशान
तय होती है जिनकी जवाबदेही
स्वयं के द्वारा स्वयंभू बनने की
पगदण्डी से
मूल में छिपा हुआ है जिसके
बेतहासा नफे का गणित
जिसमें अन्तर्निहित होती है सामन्ती सोच की
कलुषित मानसिकता
जिसके साये में धूमल पड़ने लगी हैं
उजली छवियां
ढीला पड़ने लगा है
विश्वास का
मज़बूत धागा और उसकी पकड़

Monday 12 August 2019

*****हाँ वे पण्डित ही थे****

हाँ वे पण्डित ही थे
ज्ञान के देवता नहीं
पोंगापंथ को मानने वाले
दिखाई दे जाते हैं जिन्हे
जगह जगह दोष ही दोष

हाँ वे पण्डित ही थे
पाखण्ड का विरोध करने वाले
महामानव नहीं
बल्कि झूठ और फरेब को
सच बताने वाले
आतताई

हाँ वे पण्डित ही थे
ब्रहम को भी अपने ज्ञान और कर्म से
कमतर सिद्ध करने वाले नहीं
बल्कि अहंकार और तृष्णा से युक्त
लालच के पुजारी

हाँ वे पण्डित ही थे
विश्वबन्धुत्व की सीख देने वाले
पुरोधा नही
बल्कि जाति सम्प्रदाय के नाम पर
हिंसा और उन्माद को सह देने वाले
दुर्धष दैत्य

हाँ वे पण्डित ही थे
अपने ज्ञान से विश्व को
आलोकित करने वाले
प्रकाश पुंज नहीं
बल्कि अपने अहम से
जगमगाते विश्व में अंधेरा फैलाने वाले
निशाचर