Tuesday 28 July 2020

जोंक

जोंक जैसे होते हैं 
कुछ लोग
जो गोंद,लेई 
या अन्य चिपकने वाले पदार्थों के 
अभाव में भी
चिपक जाते हैं 
अपने भीतरी दाँतों की चुभती हुई 
आरियों के सहारे
और लगातार चूसते हुए लहू
शीघ्र ही बना देते हैं
अपने अवलम्ब को जर्जर और शक्तिहीन
जमा लेते हैं 
जब पूर्ण रूप से उस पर 
अपना आधिपत्य
और हो जाते हैं सबल
तब करने लगते हैं 
अनावश्यक रूप से प्रत्येक कार्य में 
दखलंदाजी
बावजूद इसके अवलम्ब 
बनाये रखता है
खुद को एत्मिनान से उसके साथ
उसकी यही समझ 
उसे ले जाती है पतन के 
गहरे खड्ग की ओर
और उसके कुनबे को 
बिखराव की तरफ
मांस और हड्डियों के लालची 
आवारा टाइप के श्वान
घसीटते हुए शोणित सिक्त 
शरीरों में खोजते हैं 
मज़बूत हड्डियां 
बीच बीच में अपनी भौंकन के द्वारा
करते हैं दूसरे प्राणियों के समक्ष
अपनी शक्ति का प्रदर्शन
जिसका तमाशा देखती दुनिया 
एवं अफसोस के शब्दों को दुहराते हुए 
बढ़ जाती है  
उसी रफ्तार से आगे
और जारी रहती है जोक की खून चूसने की
कभी न रुकने वाली प्रवृत्ति
जिसके शिकार बनते रहते हैं
गाहे बेगाहे सीधे सादे जीव

Sunday 26 July 2020

अनुलोम और विलोम

अनुलोम और विलोम के बीच फंसा 
मैकेनिज्म
बहुत ही घातक होता है
क्योंकि यह दोनो चक्की के
दो पाट की तरह होते हैं
जिनके बीच फंसा हुआ
मैकेनिज़म 
पिसता रहता है
आनाज के दाने की भांति
कभी थूल तो कभी महीन
और कष्टों को सहता हुआ भी
करता है कोशिश
दोनों के मध्य सामंजस्य बिठाने
जिससे साथ साथ चलती रहें
दोनों क्रियाएं 
जैसे साथ साथ चलते हैं 
सुख और दुःख
साथ साथ रहते हैं 
धूप और छाया
साथ साथ रहते हैं
स्वेद और श्रम 
उसी प्रकार साथ साथ रहते हैं
अनुलोम और विलोम
कुछ लोग चमकाते है
इन्ही के बीच अपना धंधा
और घोषित करतें हैं 
खुद को फरिश्ता ।
        प्रद्युम्न कुमार सिंह

Saturday 11 July 2020

पान की वेगम

क्या है ?
पान की बेगम का रंग
लाल तो बिल्कुल नहीं
फिर कौन सा रंग होगा ?
सोचने लायक है यह बात
लालायित रहते हैं
जिसके लिए बहुत से लोग
मिल जायेंगे खोजते हुए 
सीधी सपाट जगहों से लेकर 
गली मुहल्लों के नुक्कड़ों तक
बेपरवाह आवारा से
खोज लेने का 
मन ही मन लगाते हुए कयास
इसलिए नहीं कि वह 
बहुत अधिक प्रिय है उनको
बल्कि इसलिए कि 
उसके रंग में ही छिपा है
उसकी सुर्खी का राज
जो आज भी बना हुआ 
लोगों के लिए अचरज़ का विषय
जिसे खोजने के 
अभी तक के सभी प्रयास
हो चुके हैं असफल
बावजूद इसके कुछ उत्साही लोग
अब भी जारी रखे हुए हैं 
अपने खोजी अभियान
जिससे बना रहे
खोजों के प्रति लोगों का 
दृढ विश्वास
और खोजे जा सकें 
पान की बेगम जैसे 
बहुत से अनखोजे रंग 
फिर भी रह रह उठता है 
मन में एक प्रश्न
आखिर क्या होगा ?
पानी की बेगम का रंग

Tuesday 7 July 2020

*** तुम्हारा गाँव हूँ***

मैं वही तुम्हारा गाँव हूँ
जिसकी छतें पानी से 
प्रेम करती थीं
चाँद से रात भर बतियाती थीं
सूरज से प्रतिस्पर्धा कर
स्नेहिल छांव में प्रदान करती थी
स्वर्ग सा सुख 
आकर्षण का केन्द्र होती थीं
मेरे पोखरों की फूली हुई कुमुदनियां
संकरी पगडण्डियों में 
फूट पड़ते थे आनन्द के उत्स 
रिश्तों की मिठास को सहेजे
प्यारी गौरैया फुदकती थी 
इस आंगन से उस आंगन तक
मेरी सीमा पर खड़ा 
बूढा बरगद बाँटता था 
पथिकों के बीच अपरमित स्नेह 
और मेरा विस्तृत वक्ष ही 
होता था अमीर,गरीब,
बच्चे,बूढ़े,
स्त्री और पुरुष 
सभी के लिए आश्रय स्थल
मेरे सानिध्य के लिए तरसते थे
देवता भी 
फिर भी तुमने मुझे छोड़ दिया
यह कहते हुए कि
तुम्हारी गोद में रहूँगा तो
वंचित रह जाऊँगा 
आधुनिक सुख-सुविधाओं से 
बावजूद इसके मैंने नहीं बदला 
अपना स्वभाव 
और नही परिवर्तित किया 
जीने का अंदाज
मैं आज भी खड़ा हूँ
अपनी सिवारों के सहारे
ममत्व की उसी भाव भंगिमा के साथ
क्योंकि मैं गाँव हूँ
जो कभी नहीं भागता 
अपने कर्मपथ से
मैं आज भी उतना ही सक्षम हूँ
जितना सदियों पूर्व 
हुआ करता था
जिसमे सहजता सरलता 
और आत्मीयता के गुणों से युक्त 
सरहदों सरीखे
तुम भी होते थे मेरे साथ  I