Sunday 19 November 2017

****वे बचकर निकलते हैं सकुशल****

इतने चतुर हैं वे
जो तलाश लेते हैं
दुर्गम और असुरक्षित
स्थानों पर भी
पहुँचने के लिए
सुविधाजनक रास्ता
उन्हें आभास है
चुटहिल होने की
पीड़ा का
वे समझते हैं
त्यौरियों की नज़ाकत
और उनकी हक़ीकत को
क्योंकि वे वाकिफ होते है
त्यौरियों के चढने और उतरने के
हुनर से
इसीलिए वे भाँप लेते है
समय से पूर्व संभावित खतरा
वे खुद को अलगा लेते हैं
खतरे से पहले
और बचकर निकलते हैं
सकुशल

Sunday 5 November 2017

**** वे पिता ही थे*****

वे पिता ही थे
कभी भी नही कराते थे
जो एहसास
अपने जर्जर होने का
अपनी विवाइयों के दर्द
कई रातो के जागने की
व्यथा का
क्योंकि वे देखना चाहते थे
हमेशा ही
बच्चों को खुश
वे उनकी ही खुशी में
ढूंढ लेते थे
खुद की खुशी
उनकी चहकन में
भूल जाते थे
जीवन की फीकी होती
खुशियों की तासीर
वे नहीं चाहते थे
कभी भी उनका दर्द
जान सके उनके बच्चे
और उनकी खुशियों के क्षणों में
बन जाये बाधक
इसीलिए वे छिपाते थे
हमेशा ही अपने बच्चों से
अपना दर्द