Friday 24 February 2017

****कंदील****

विकराल अंधेलों से
घिरी हुई
कंदील आज भी
धैर्य व उम्मीद की किरणे
समेटे
अकेले ही लड़ने को
तैयार है
अंधड़ो के मध्य से
झांकता अंधेरा
अपनी विजय पर
आश्वस्त मुस्कुरा रहा है
इन सबके बावजूद
अपनी हद पर अड़ी
कन्दील
आज भी जलाये हुए है
अन्तर में
आशा का नव दीप
जो उसके वजूद के
आरम्भ से
अंधड़ो से वेपरवाह
अनवरत जलता रहा है
और उसकी तपिस
कन्दील को आज तक
बनाये हुए है
स्थिर और दृढ प्रतिज्ञ

Monday 20 February 2017

*****सपनों की जंग****

टूट पड़ते हैं
तुम्हारे शब्दों के
झुण्ड पर झुण्ड
जब भी मैं चाहता हूँ
कुछ कहना
करते हैं घात प्रतिघात के
सारे प्रयास
जिससे दबाई जा सके
आवाज गहरे तक
और बढाई जा सकें
मुश्किलें
भींच लेता हूं
मैं अपने होंठ
और तनी हुई मुट्ठियां
फिर रह जाता हूं
खामोश
किन्तु जब आती है बात
कुछ सोचने और विचारने की
त्यागकर सभी भय
फूँकता हूँ
विद्रोह का बिगुल
जिससे रोकी जा सके
शब्दों के झुण्डों की
मनमानी
और जीती जा सके
सपनों की जंग

Tuesday 14 February 2017

****प्रेम की जुंबिस****

जब जब होगी प्रेम की
जुंबिस
युद्ध होंगे तब तब
और चल पड़ेंगी युद्धों की
अबाध श्रृंखलायें
बज उठेगी दुन्दुभी
महाविनाश
और सर्वविनाश की
कुछ व्रत लिए
जायेंगे
कुछ पूर्ण होंगे
कुछ रह जायेंगे अधूरे
कुछ की कसक होगी
होठों पर
कुछ की दफ्न हो जायेगी
इतिहास के पृष्ठों में
जिसे फिर से खोजते
मिलेंगे
नरेन्द्र और चैतन्य
और खोज करते मिलेगा
जग का कोना कोना
शुचिता के आवरण में
ढके
देह जनित जातियुक्त
प्रेम को
जब जब होगी प्रेम की
जुंबिस
रिश्तो के मध्य पड़ेंगी दरारें
और छटपटाहटों के बीच
खो जायेगी
प्रेम की हकीकत

Saturday 11 February 2017

****उच्छ्रंलित रोंक****

वह क्यों करता है ?
हाय तौबा सबसे अधिक
जिसके पास खोने को
नही होता कुछ
भूख और प्यास होती
संगनी
बिछावन में होती है
धरती की चादर और
मिट्टी का सानिध्य
वह क्यो करता है ?
पैमाइश
अन्न और जल की
जबकि यह दोनो
कभी शामिल नही होते
उसकी जीवन प्रत्यासा में
न ही सहचर्य रहे कभी भी
उसके विकास पथ में
फिर भी
वह चिल्लाता है
अपने ही विरुद्ध
जिससे उसके इस आघार पर
लगाई जा सके
आजादी के नाम पर
उच्छ्रंखलित रोंक

****उन्हे डर है****

उन्हे डर है,
तुम्हारे शब्दो की
तेज धार से
छिलने का नही
अपितु कटने का
क्योकि उन्हे मालूम है
तुम्हारे हर्फों में
छुपे हैं
जीवन के सपने
आसमान की ऊंचाइयाँ
सागर की अतल गहराइयाँ
जो किसी भी
बम और पिस्तौल से
अधिक घातक हैं
तुमने संजो दिये हैं जिनको
इन मुट्ठी भर किताबों के
बीच
जो उम्मीदों की एक कृषकाय
किरण को
कभी भी ज्वालामुखी सा
भयंकर बनाने का रखते हैं
माद्दा
और दे सकते हैं
सपनों के तलासने का
माकूल रास्ता
उन्हें  तलाश है
सपनों को सपनों से बाहर
निकालने वाले
कर्मयोगियों की
जिससे बदले जा सकें
सपने और सपनों के मायने
और उनके हाथों में थमाये जा सकें
रुनझुन बजने वाले झुनझुने
इतने सब के बाद भी
सपनों के सामने
छोटे पड़ जाते  है
सपनों को खत्म करनें के
सारे हथकण्डे
और दिन प्रतिदिन
बढ़ती ही जा रही है
स्वप्न दृष्टाओं की
तादाद
और बढती जा रही है
स्वप्नों की अहमियत |

Thursday 9 February 2017

****क्योकि****

क्योकि संसद से सड़क तक
खड़े हैं वे बाँह उठाये
रोटी में भी आता है
खोट नज़र
बदली भाषा बदले रूप
तू डाल डाल तो
मैं पात पात की
हुई अब खाप खाप
क्योकि संसद से सड़क तक
खड़े है वे बाँह उठाये
क्या घनश्याम क्या दादूराम
क्या वाहे क्या रहमान
छौनी नौनी के बीच
छाते को आया बुखार
क्योंकि संसद से सड़क तक
खड़े हैं वे हाँथ उठाये
दल्लो की सजी मंडिया
मड़िया संग मड़िया हाईटेक
औकात क्या किसकी
बेंच रही जमातें सारी
बिकने को आते सब
बारी बारी
तुला रख रोटी बांटता बंदर
तोड़ तोड़ कौर
मजे से खाता बंदर
क्योंकि संसद से सड़क तक
खड़े हैं वे हाँथ उठाये |

Wednesday 8 February 2017

******रिश्तों की फेहरिश्त******

रिश्तों की फेहरिश्त
लम्बी हो
यह आवश्यक नहीं
ना ही पहिचान है
किसी शख्शियत की
रिश्ते और फेहरिश्त
अक्सर दे देतें है
धोखा
और काम आता है
सिर्फ और सिर्फ
आपका हौसला
जो ढूंढ निकालता है
मंजिल
और मंजिल तक का फासला
जिसमे लगे होते हैं
असीमित अवरोध
रास्तों और मंजिलों के
जिससे रोका जा सके
संभावनाओं के घुमावदार
रास्ते
और ठहराया जा सके
रोक को उचित

Tuesday 7 February 2017

*****नकचढ़ी हो गई दिल्ली*****

नकचढ़ी हो गई है
दिल्ली
तीन तिकड़मी
नज़र चढाये
नाक भौं सिकोड़ती
दिल्ली
नये कुतर्क के साथ
जलालत के रंग
उभारती
नकचढी हो गई है
दिल्ली
दल्लों के गल्लों सी है
सज्जादों के लफ्जों में
गुलेल लगाती
अपने ही अपने में
मशगूल रहती
पुरस्कारों की खोह सी
बहुधंधी सी
नकचढी हो गई है
दिल्ली

Thursday 2 February 2017

*****बहुत जरूरी होता है*****

बहुत ज़रुरी होता है 
अनावश्यक बातों पर
हस्ताक्षेप
जैसे जरूरी होती
भूख के लिये रोटी
खाली हाथों के लिये
काम
रिश्तों के लिये रिश्तों की
अहमियत
वैसे ही जरूरी होता है
अनावश्यक बातों पर
हस्ताक्षेप
जैसे जरूरी होता है
आस पास शेष बच गये
लोगो को देखना
और वीरान हो चुके रास्तों पर
छूटे क़दमों के निशानों का
छूट जाना
वैसे ही जरूरी होता है
अनावश्यक बातों पर
हस्ताक्षेप
जैसे जरूरी होता
स्वांग के पीछे स्वांग रचाते
किरदार
अंधेलों के बीच उजाला
शब्दों के साथ शब्दों का
अहमियत
वैसे ही बहुत जरूरी होता है
अनावश्यक बातों पर
हस्ताक्षेप करना