जब जब होगी प्रेम की
जुंबिस
युद्ध होंगे तब तब
और चल पड़ेंगी युद्धों की
अबाध श्रृंखलायें
बज उठेगी दुन्दुभी
महाविनाश
और सर्वविनाश की
कुछ व्रत लिए
जायेंगे
कुछ पूर्ण होंगे
कुछ रह जायेंगे अधूरे
कुछ की कसक होगी
होठों पर
कुछ की दफ्न हो जायेगी
इतिहास के पृष्ठों में
जिसे फिर से खोजते
मिलेंगे
नरेन्द्र और चैतन्य
और खोज करते मिलेगा
जग का कोना कोना
शुचिता के आवरण में
ढके
देह जनित जातियुक्त
प्रेम को
जब जब होगी प्रेम की
जुंबिस
रिश्तो के मध्य पड़ेंगी दरारें
और छटपटाहटों के बीच
खो जायेगी
प्रेम की हकीकत
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