Friday, 24 February 2017

****कंदील****

विकराल अंधेलों से
घिरी हुई
कंदील आज भी
धैर्य व उम्मीद की किरणे
समेटे
अकेले ही लड़ने को
तैयार है
अंधड़ो के मध्य से
झांकता अंधेरा
अपनी विजय पर
आश्वस्त मुस्कुरा रहा है
इन सबके बावजूद
अपनी हद पर अड़ी
कन्दील
आज भी जलाये हुए है
अन्तर में
आशा का नव दीप
जो उसके वजूद के
आरम्भ से
अंधड़ो से वेपरवाह
अनवरत जलता रहा है
और उसकी तपिस
कन्दील को आज तक
बनाये हुए है
स्थिर और दृढ प्रतिज्ञ

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