Friday 24 January 2020

जन गण मन

जब तक वे रहते हैं
एक दूसरे के विरुद्ध 
तने हुए
नदी के किनारों की तरह
तब तक स्वच्छन्द 
बहती है नदी
दोनो विपरीत किनारे 
जब भी करते हैं
आपस में मिलने का प्रयास
हमेशा खड़ा करते उस
उस नदी के अस्तित्व पर संकट
जिसकी कोख से 
वे खुद जनमते है
ऐसा ही निहायत विरोधी
रिश्ता होता है
राजनीति और साहित्य का 
जब तक रहते हैं
एक दूसरे के खिलाफ
जन गण मन लेता है
स्वच्छन्द रूप से सांसे
और मिलने पर 
हांफता हुआ ।

Thursday 23 January 2020

तुम्हे डरायेंगे

वे तुम्हे डरायेंगे 
पर तुम डरना नहीं 
वे करेंगे 
तुम्हे तोड़ने का प्रयास
पर साथी तुम पूरी तन्मयता के साथ
एकजुट रहना
थे देंगे तुम्हे पीने के लिए 
नफरती ज़हर का प्याला
अमृत समझ पी लेना
वे करेगे गुमराह
तुम राह खुद चुन लेना
वे लगायेंगे दाग दामन पर
तुम उसे भी पूत बना देना
ऐसा करते हुए
ध्यान रहे जीतते वही हैं
जिनमें जीतने का माद्दा होता हैं 
साथी तुम डटे रहना
अपने विश्वासो के साथ
क्योंकि वे डर चुके हैं
पूरी तरह से
अब तो बस उसका 
खोल निकलना रह गया है शेष

बड़े नामुराद

बड़े नामुराद निकले तुम
खाते हो किसी का
और गाते हो 
किसी और का
अपनी धरती से प्यार नहीं
औरों की धरती को मां कहते हो

बड़े नामुराद निकले तुम
औरों के लिए कहते हो अपशब्द
तो तुम्हारे लिए कोई बात नहीं
और कहें तुम्हे तो
गाली समझते हो
अपनी करनी कथनी के भेद
भाते हैं
पर दूसरों की सच्ची बाते 
जहर सरीखे लगती है

बड़े नामुराद निकले तुम
हमसफरों की परवाह नहीं तुम्हे
गैरों पर नज़र फरमाते हो
कठ से काठ
काठ से उल्लू का पाठ पढाते हो
देख रही दुनिया सारी
खुलेआम बंटती
तुम्हारी नफ़रती पंजीरी

बड़े नामुराद निकले तुम
तिल का ताड़ बनाते हो
जीवन रस में
घोल रहे निज विष की हाला
पीकर जिसे भभक रहे
लालटेन के कल्लों से
मद में झूमते मतवाले

थक चुके है

थक चुके हैं
सारे शब्द
थक चुकी है
सभी मर्यादाएं
थक चुके है
जीवित लोग
क्योंकि थकना !
रुक जाना नहीं होता
बल्कि रुककर फिर से
स्फूर्ति प्राप्ति का
माध्यम होता है
यद्यपि आसान नहीं होता 
इस सच्चाई को
सहज में स्वीकार कर पाना
इसीलिए कुछ लोग मान लेते हैं
थकने को 
असफल होने के पूर्व 
संकेत 


बड़े नामुराद

बड़े नामुराद निकले तुम
खाते हो किसी का
और गाते हो 
किसी और का
अपनी धरती से प्यार नहीं
औरों की धरती को मां कहते हो

बड़े नामुराद निकले तुम
औरों के लिए कहते हो अपशब्द
तो तुम्हारे लिए कोई बात नहीं
और कहें तुम्हे तो
गाली समझते हो
अपनी करनी कथनी के भेद
भाते हैं
पर दूसरों की सच्ची बाते 
जहर सरीखे लगती है

बड़े नामुराद निकले तुम
हमसफरों की परवाह नहीं तुम्हे
गैरों पर नज़र फरमाते हो
कठ से काठ
काठ से उल्लू का पाठ पढाते हो
देख रही दुनिया सारी
खुलेआम बंटती
तुम्हारी नफ़रती पंजीरी

बड़े नामुराद निकले तुम
तिल का ताड़ बनाते हो
जीवन रस में
घोल रहे निज विष की हाला
पीकर जिसे भभक रहे
लालटेन के कल्लों से
मद में झूमते मतवाले

Wednesday 22 January 2020

जा चुके लोग

 जा चुके लोग
यद्यपि नही आते कभी भी
वापस लौट कर
किन्तु वे बचे रहते हैं
समय की खुरचन में
स्मृतियों के रूप में
और याद आते हैं
गाढे समय में शिद्दत से
अपने विचारों की ज्योति लिए

शहर की सड़क

शहर की सड़क पर
कपड़ों के नाम पर
फटे चीथड़े पहने
कूड़ा बीनते हुए मासूम बच्चे
नन्हे कन्धों पर जिम्मेदारी को बोझ
उठाये हुए
खोने के डर से 
नन्ही मुट्ठियों से
थैले को दबाये हुए
लगातार खोज खोज कर
शहरी अपशिष्ट से 
बढा रहा था थैले का आकार
जिसमे बसता उसका
छोटा सा संसार
वह नही जानता
बहुत से दुनियावी खेल
क्योंकि वे सभी 
उसकी पहुँच से बहुत दूर है
जिन्हे चाहकर भी 
वह नहीं खेल सकता
उसके लिए तो मात्र
कुछ काँच की बनी गोलियां
और एक पैर से खेला जाने वाला 
खेल ही
दुनिया का सबसे विशिष्ट खेल है
जिसका वह बेताज बादशाह है 
इसके अतिरिक्त
न तो वह कोई खेल जानता है
न ही उसे मिलती है फुर्सत
क्योंकि उसके हर खेल के साथ
थैला होता है 
और थैले के साथ उसका हर खेल
 जो कूड़े के ढेर शुरू होकर
उसी में सिमट जाता है I

****ठूठ की तरह****

एक ठूठ की तरह
वह हमेशा खड़ा रहता था 
आंगन के बाहर दरवाजे के
एक कोने में
कराता था
हर आने जाने वाले को
अपने होने का एहसास
हमें लगता था
बेकार हो चुका है वह
जाने अनजाने खोजते थे
उसकी बुराइयाँ
पर इन सबसे बेपरवाह
वह दिलाता रहा 
अपने अस्तित्व का एहसास
आज जब ढह चुका है वह
निढाल होकर पूरी तरह 
हमे मालूम हो रहा है
उसके खड़े रहने की 
अहमियत
जो मात्र ठूंठ ही नहीं था
बल्कि हमारे दायित्वो का बोझ
संभाले हुए हमारा सम्बल था
जिसके साये में
हम आज तक महफूज रहे


Monday 20 January 2020

उनके लिए

जब युवा मांग रहें हैं
बेरोजगारी से लड़ने हेतु
रोजगार
ऐसे समय वे थमा रहें हैं
तुम्हारे हाथों में खुश रहने के नुख्शे
तुम्हे ही गलत साबित करके

जब तुम लड़ रहे हो भूख से
वे दिखा रहें हैं
तुम्हे हसीन सपनों के सब्जबाग
और आसानी से कर लेते हो यकीन
भूख से अधिक आवश्यक है
सपने
एवं चल लेते हो सपनों की खोज में

जब तुम सोच रहे होते हो
अपने बारे में
वे बताते हैं तुम्हारे कर्तव्य
जिनके लिए तुम्हे छोड़ना होता है
अपने बारे में सोचना
और तुम छोड़ देते हो
उनके लिए सब कुछ 
l

कौन हैं वे लोग

कौन हैं ?
वे लोग
जो लगा रहे हैं
अमन चैन सें आग
और जलते रहने के लिए
लगातार डाल रहें हैं
नफ़रती घी

कौन हैं ?
वे लोग
जो चूस रहें है
अमीरों को और अमीर बनाने के लिए
पी रहें हैं गरीबों का लहू
अपने दिखावटी मासूम अदाओं की
आड़ में

कौन है ?
वे लोग
जिनकी बाते पूरित होती है
विश्वास के स्थान में
अविश्वास द्वारा 




Sunday 19 January 2020

****शिलालेख नहीं होती****

शिलालेख !
नहीं होती जिंदगी
जिसे अंकित करा दिया जाये
किसी राजा के द्वारा
भाषाविद की मदद से
राजाज्ञा के रूप में
ना ही हकीकतों से दूर 
भागने का नाम है 
बल्कि समय की चुनौतियों को 
स्वीकार कर
जीने की कला है
जिसमें रिक्त रहती है 
हमेशा कुछ जगहें
जिसमे समाहित होती हैं
मासूमियत, आवारगी
और नादानी 
जिनसे होकर गुजरती बेलौस जिन्दगी

*****अफीमचियों का प्रेम*****

अफीमचियों का प्रेम ही है
कोई सेवन करता है
नशे के रूप में
कोई नफे के लिए
दोनो का वह प्रेम ही है
जो जोड़े रहता है 
उन्हे एक दूसरे से 
इच्छा न होते हुए भी
एक सरकता है धीरे से 
और पूंछता है करीब आने पर
क्या अफ़ीम लोगे ?
दूसरा कहता ही नहीं 
बल्कि भरता है 
नकार के साथ हामी भी
अफीम के प्रति ।
क्योंकि अफीमचियों का प्रेम 
होता ही ऐसा है
जो लाख बुराइयां होने के बावजूद
बना रहता है
एक दूसरे से पूर्व की भाँति 
स्थिर और मजबूत

Saturday 18 January 2020

****केवल मुस्कुरा देते हैं ****

पढ़-लिख गए हैं
अब
उन्होने पढ ली है 
संसार की तमाम पोथियां
जिनमे लिखा हुआ है
नफ़रत वह फौलादी अवरोध होती है
जिसके पार जा सकना
आसान नहीं होता
मुकम्मल तैयारियों के साथ ही
विजित की जा सकती हैं
ऐसी दीवारें
यद्यपि उन्होने इनसे निपटने के लिए
 खरीद लिया है
जुराब और दस्ताने 
जिससे बचा जा सके आसानी से
इसीलिए उन्होने बदल लिया 
अपना पारम्परिक पैतरा
अब वे नहीं हंसवे हैं
खुलकर
बल्कि समय की नज़ाकत भांपकर
केवल मुस्कुरा देते हैं

****यह सच है***

यह सच है !
समय के साथ बदलता रहता है
दुनिया में बहुत कुछ
फिर वह चलती रहती है
अपनी ही रफ्तार के साथ अनवरत
कुछ चीजें हैं
जो कभी नहीं बदलती 
या यूँ कहे नही बदल सकती
मसलन प्राकृतिक वैभव से युक्त
खुशी झलक पड़ती है
पूरी मासूमियत के साथ
चेहरों में मुस्कुराहट के रूप में
यद्यपि कुछ लोग
तंज कसते हैं
चेहरों में खिली मुस्कुराहट को देखकर पर
पर रोक नहीं पाते
चेहरों से नव किल्लियों के रूप में
फूटती सच्ची हंसी को

Thursday 16 January 2020

***उदास होती***

हाँ ठीक सुने हो
अक्सर उदास होती हैं
खिलखिलाती सुबहों की शामें
जैसे हंसती जिंदगी
लौट पड़ती है
समय के पड़ाव पार करते हुए
उदासी की ओर
वायु के झकोरों से लड़ता हुआ
दीपक
तेल के खत्म होने पर
उदास होकर
बुझने लगता है
और छोड़ जाता है
कालिख की स्याही 
रात्रि के माथे पर
उदास होने की 
स्मृति के रूप में

***बड़ा आदमी***

जो छोटो से
प्रेम और स्नेह का 
आचरण करता है
औरों की खामियों में भी
खूबियाँ खोजने का 
प्रयास करता है
आगे बढते व्यक्ति की
हर सम्भव मदद करता है
दूसरों के सुख दुख में 
सहभागिता करता है
भले ही उसके पास कुछ न हो
मैं मानता हूँ 
उसे बड़ा आदमी

जो दूसरों के लिए गड्ढे
खोदता है 
आगे बढने के सभी द्वार 
बन्द करता है
छिद्रान्वेषण के नये नये 
मार्ग खोजता है
बात बात पर झूठ का 
सहारा लेता है
अपना दोष दूसरों के
सर मढता है
उसके पास सब कुछ 
होने बाद भी
मै नहीं मानता हूँ
उसे बड़ा आदमी I



****हंसकर बिकने के लिए****

जो कुछ भी दिखाई देता है
क्या सब कुछ होता है
बिकाऊ ?
वाजार जिसे बेचना चाहता है
या फिर जिसे बेचता है
आखिर कब तक लगे रहोगे
बेंच खरीद के धंधे में

तुम कितना जानते हो
बेंच और खरीद के बारे में
क्या तुम्हारे द्वारा खरीदा जा सकता है
सभी का ईमान
या सबकी इच्छाएं
तुमने क्या कभी देखा है ?
किसी को बिकते
या फिर किसी को खरीदते

हक की आवाज उठाने को
क्या बिकना कहते हैं
या फिर सबको समान नज़रिये से
देखने को
या फिर पराई इच्छा पर
खुद को समर्पित कर देने को ही
कहेंगे बिकना
यदि इसे बिकना कहते हैं
तो मैं तैयार हूं वस्तु की तरह
हंस कर बिकने के लिए T


Wednesday 15 January 2020

***दूसरी बहन***

दूसरी
मां होती है
बड़ी बहन
सहती है सभी कष्ट
पर खड़ी रहती है
छोटे भाई बहनों के आगे
सारी परेशानी से
रक्षार्थ मजबूत दीवार सी
माता सी वत्सलता की
प्रतिमूर्ति
स्नेह की सूत्रधार
होती है
सच में!
दूसरी मां होती है
बड़ी बहन




****तुम्हारा प्रेम****


तुम्हारा प्रेम !
वक्त की शिराओं में
स्वरों का विविधता युक्त 
अंदाज लिए हुए 
घुला हुआ है
शब्दहीन सिकुड़न में
ठिठुरन के साथ
आंखों में चमकता
तुम्हारा शहर 
और उसमे भटकते तुम
इस वेरहम वक़्त में 
भेद और अभेदयुक्त
गुमनाम चुप्पियां देती हैं
बताती हैं 
तुम्हारे प्रेम की दास्तान
जिसे शब्दों में व्यक्त कर सकना
सम्भव नहीं है
जैसे कांटों के लिवास में
उलझ कर रह जाता है
सुख का टिमटिमाता संसार

Tuesday 14 January 2020

****खत्म होती****

खत्म होती जा रहीं हैं
धीरे धीरे
मानव के प्रति मानवीयता की
समस्त सीमाएं
समय के साथ साथ
बदल रही हैं
बहुत ही तेजी के साथ
रिश्तों के बीच की तपिश
जिनकी जिम्मेदारी
उठाते हैं
मानव अहं जन्य भाव 
जिन्हे भड़काने का कार्य करते हैं
कुछ निहित स्वार्थ
एवं उनके संचालक लोग
रोपदेते हैं जो बड़ी ही 
खूबसूरती के साथ नफ़रती अमरबेल
जिनकी जड़ों के चंगुल में
आ जाते है
बहुत निरपराध पौधे 
एवं उनकी शाखाएं
ठीक उसी प्रकार होते हैं
जैसे कुछ शातिर लोग
और उनके कुनबे
आमादा होते हैं खत्म करने में 
हंसते खेलते परिवारों को

***वे खोदते हैं***

वे बार बार खोदते हैं
अपनी चतुराई के गड्ढे
और उसमें खड़ी करते हैं
पेंचो खम की
बहुत सी अनुलंधनीय दीवारे
जिनकी रक्षार्थ नियुक्त करते हैं
बाकायदा प्रशिक्षित भृत्य
देते है जिन्हे
पगार के रूप में
स्वार्थ प्रेरित लिजलिजी 
बातो की हुंडियां
जिसकी चकमक में 
खो देते हैं अपनी चमक
सारे आदर्श और कर्तव्य बोध
बावजूद इसके वे
लगातार जुटे रहते हैं
निरन्तर खोदने में
हिकारती गड्ढे
इस प्रकार वे बेखौफ हो 
लागू करते हैं
अपना घृणित एजेण्डा
जिसकी जद में आता है
सभ्य समाज का बहुत बड़ा हिस्सा

Monday 6 January 2020

****सच्चे योद्धा सरीखी****

हाँ !
उसे नहीं आती
अक्षरों की जुगाली
फिर भी वह
उत्सुक रहती है
उनके प्रति
कभी दायें कभी बायें
उन्हें ही खोजती है
उसकी निगाहे
जब कभी मिलती है
फुरसत
निकल पड़ती है वह
अंजान पथिक सी
खेल के समय जब खेल रहे होते हैं
सारे बच्चे
वह खोई रहती है
अक्षरों के इंतजार में ।

हाँ!
उसे नहीं आती
अक्षरों की जुगाली
पकवानों की आस में
जब सारे बच्चे
छोड देते हैं
सम्पूर्ण़ कार्य अधूरे ही
और गड़ाये रहते हैं
लालच भरी निगाहे उन्ही पर
तब भी वह व्यस्त रखती है
अपनी निगाहें
खोजने में अक्षरों की राह |

हां !
उसे नहीं आती
अक्षरो की जुगाली
फिर भी वह डटी रहती है
एक सच्चे योद्धा सरीखी
सुबरनों की खोज में
जिन्हे खोजा जाना अभी भी
शेष हैं ।