शिलालेख !
नहीं होती जिंदगी
जिसे अंकित करा दिया जाये
किसी राजा के द्वारा
भाषाविद की मदद से
राजाज्ञा के रूप में
ना ही हकीकतों से दूर
भागने का नाम है
बल्कि समय की चुनौतियों को
स्वीकार कर
जीने की कला है
जिसमें रिक्त रहती है
हमेशा कुछ जगहें
जिसमे समाहित होती हैं
मासूमियत, आवारगी
और नादानी
जिनसे होकर गुजरती बेलौस जिन्दगी
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