तुम्हारा प्रेम !
वक्त की शिराओं में
स्वरों का विविधता युक्त
अंदाज लिए हुए
घुला हुआ है
शब्दहीन सिकुड़न में
ठिठुरन के साथ
आंखों में चमकता
तुम्हारा शहर
और उसमे भटकते तुम
इस वेरहम वक़्त में
भेद और अभेदयुक्त
गुमनाम चुप्पियां देती हैं
बताती हैं
तुम्हारे प्रेम की दास्तान
जिसे शब्दों में व्यक्त कर सकना
सम्भव नहीं है
जैसे कांटों के लिवास में
उलझ कर रह जाता है
सुख का टिमटिमाता संसार
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