Monday 6 January 2020

****सच्चे योद्धा सरीखी****

हाँ !
उसे नहीं आती
अक्षरों की जुगाली
फिर भी वह
उत्सुक रहती है
उनके प्रति
कभी दायें कभी बायें
उन्हें ही खोजती है
उसकी निगाहे
जब कभी मिलती है
फुरसत
निकल पड़ती है वह
अंजान पथिक सी
खेल के समय जब खेल रहे होते हैं
सारे बच्चे
वह खोई रहती है
अक्षरों के इंतजार में ।

हाँ!
उसे नहीं आती
अक्षरों की जुगाली
पकवानों की आस में
जब सारे बच्चे
छोड देते हैं
सम्पूर्ण़ कार्य अधूरे ही
और गड़ाये रहते हैं
लालच भरी निगाहे उन्ही पर
तब भी वह व्यस्त रखती है
अपनी निगाहें
खोजने में अक्षरों की राह |

हां !
उसे नहीं आती
अक्षरो की जुगाली
फिर भी वह डटी रहती है
एक सच्चे योद्धा सरीखी
सुबरनों की खोज में
जिन्हे खोजा जाना अभी भी
शेष हैं ।

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