जब तक वे रहते हैं
एक दूसरे के विरुद्ध
तने हुए
नदी के किनारों की तरह
तब तक स्वच्छन्द
बहती है नदी
दोनो विपरीत किनारे
जब भी करते हैं
आपस में मिलने का प्रयास
हमेशा खड़ा करते उस
उस नदी के अस्तित्व पर संकट
जिसकी कोख से
वे खुद जनमते है
ऐसा ही निहायत विरोधी
रिश्ता होता है
राजनीति और साहित्य का
जब तक रहते हैं
एक दूसरे के खिलाफ
जन गण मन लेता है
स्वच्छन्द रूप से सांसे
और मिलने पर
हांफता हुआ ।
No comments:
Post a Comment