बड़े नामुराद निकले तुम
खाते हो किसी का
और गाते हो
किसी और का
अपनी धरती से प्यार नहीं
औरों की धरती को मां कहते हो
बड़े नामुराद निकले तुम
औरों के लिए कहते हो अपशब्द
तो तुम्हारे लिए कोई बात नहीं
और कहें तुम्हे तो
गाली समझते हो
अपनी करनी कथनी के भेद
भाते हैं
पर दूसरों की सच्ची बाते
जहर सरीखे लगती है
बड़े नामुराद निकले तुम
हमसफरों की परवाह नहीं तुम्हे
गैरों पर नज़र फरमाते हो
कठ से काठ
काठ से उल्लू का पाठ पढाते हो
देख रही दुनिया सारी
खुलेआम बंटती
तुम्हारी नफ़रती पंजीरी
बड़े नामुराद निकले तुम
तिल का ताड़ बनाते हो
जीवन रस में
घोल रहे निज विष की हाला
पीकर जिसे भभक रहे
लालटेन के कल्लों से
मद में झूमते मतवाले
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