हाँ ठीक सुने हो
अक्सर उदास होती हैं
खिलखिलाती सुबहों की शामें
जैसे हंसती जिंदगी
लौट पड़ती है
समय के पड़ाव पार करते हुए
उदासी की ओर
वायु के झकोरों से लड़ता हुआ
दीपक
तेल के खत्म होने पर
उदास होकर
बुझने लगता है
और छोड़ जाता है
कालिख की स्याही
रात्रि के माथे पर
उदास होने की
स्मृति के रूप में
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