आखिर क्यों ?
चुप रहती है दिल्ली
उदार दाराशिकोह को
अपमानित कर
घुमाया जाता है जब
हाथी की नंगी पीठ पर बैठाकर.
आखिर क्यों ?
चुप रहती है दिल्ली
रक्त पिपासु
नादिर शाह मुस्कुराता है
जब रक्तरंजित लाशों के बीच
खड़े होकर
आखिर क्यों ?
चुप रहती है दिल्ली
हिन्दुस्तान का लाल
बन्दा बैरागी
जब कुर्बान हो जाता है
देश के खातिर
आखिर क्यों ?
चुप रहती है दिल्ली
विद्रोह का नेतृत्व करने वाले
बहादुर शाह ज़फर को
जब कर लिया जाता है
देशद्रोह के जुर्म में
उसी के पितामहों प्रपितामहों की
कब्रो के पास से
आखिर कब तक ?
चलता रहेगा यूँ ही
और खामोश बनी रहेगी दिल्ली
क्या कभी भी ?
हुंकार नहीं भरेगी दिल्ली
या फिर सदा की भाँति
एक बार फिर से किसी आतताई के
खौफ के साये में
डरी सहमी दिल्ली
नतमस्तक बनी रहेगी मौन
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