अनुलोम और विलोम के बीच फंसा
मैकेनिज्म
बहुत ही घातक होता है
क्योंकि यह दोनो चक्की के
दो पाट की तरह होते हैं
जिनके बीच फंसा हुआ
मैकेनिज़म
पिसता रहता है
आनाज के दाने की भांति
कभी थूल तो कभी महीन
और कष्टों को सहता हुआ भी
करता है कोशिश
दोनों के मध्य सामंजस्य बिठाने
जिससे साथ साथ चलती रहें
दोनों क्रियाएं
जैसे साथ साथ चलते हैं
सुख और दुःख
साथ साथ रहते हैं
धूप और छाया
साथ साथ रहते हैं
स्वेद और श्रम
उसी प्रकार साथ साथ रहते हैं
अनुलोम और विलोम
कुछ लोग चमकाते है
इन्ही के बीच अपना धंधा
और घोषित करतें हैं
खुद को फरिश्ता ।
प्रद्युम्न कुमार सिंह
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