देश सारा मौन है
आखिर वह कौन है
देता वक्त जिसकी गवाही
हुक्म नहीं फरमान है
राष्ट्र सारा मौन है
आखिर वह कौन है
बेचता है सब कुछ
धर्म,ईमान,और मान
कहता फिर भी
आरोप सारे कौन हैं
पूंजी के रथ पर सवार
वक्र दृष्टि दंगा करती
सौ सौ प्याले गरल उगलती
चमन के अमन में खलल उसका
मधु के छत्ते से मधू लुटाता
ईमान धरम की बातें करता
तुम्ही बताओ मदारियों सा
वह कौन
क्योंकि उत्तर भी इसका मौन है ।
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