कुछ तो रहा होगा
उनका मकसद
यूँ छुपे हुए रहने का
यद्यपि दिन प्रति दिन
वे खोते जा रहें हैं
विश्वास
उनका यूँ बार बार
आ धमकना
आगाह करता है
खतरे में है उनका वजूद
और मुश्किल में हैं उनकी
अंस्मिता
जिसकी जद में आ चुकी है
ओढी दसाई उनकी हठधर्मिता
और तुर्रा बना उनका अहम
अबोल होने के बाद भी
बहुत कुछ कहते हैं
चहलकदमी के कारण निर्मित हुए
उनके पैरों के निशान
तय होती है जिनकी जवाबदेही
स्वयं के द्वारा स्वयंभू बनने की
पगदण्डी से
मूल में छिपा हुआ है जिसके
बेतहासा नफे का गणित
जिसमें अन्तर्निहित होती है सामन्ती सोच की
कलुषित मानसिकता
जिसके साये में धूमल पड़ने लगी हैं
उजली छवियां
ढीला पड़ने लगा है
विश्वास का
मज़बूत धागा और उसकी पकड़
Saturday, 17 August 2019
**** कुछ तो रहा होगा*****
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