Wednesday 11 September 2019

****काश वे जिन्दा होते****

काश वे जिन्दा होते
तो देखते
अपने द्वारा रोपी गई
कौमी नस्लों की लहलहाती
फसलें
जो बढ़ चुकीं है
कितनी आगे

काश वे विचारे होते
वंशवाद से ही फूटती हैं
किल्लियों सी नस्लें
और यह ही कर देती हैं तबाह
किसी भी सार्वभौम
सत्ता को

काश वे चेते होते
नस्ली होने से पूर्व
और छोड़ देते समय रहते
पीछे चलने वाला
अपना धइना
तब अपने आप खत्म हो जाता
हमेशा खटने का टंटा

काश वे समझे होते
नस्लवाद के हानि और  लाभ
और फिर विचार करते
तो शायद कल से वेहतर होती
आज की तस्वीर
तारीफों के कसीदों के
अतिरिक्त
यदि सुनी गई होती
अपनी भी आलोचना
तो बदल गये होते कब के हालात

काश वे जिन्दा होते
तो सुनते अपने नुमाइंदों की
गंधाती दोमुही बातें
जिनके लिए दो तरह की होती हैं
आदर्श की परिभाषाएं
एक खुद के लिए दूसरी दूसरों के लिए
शायद आज जीवित होते हुए भी
जिन्दा नहीं रहे
क्योंकि जिन्दा होने और मृत होने में
फर्क होता है चेतना का

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