विस्तारित होता जा रहा है
दिन ब दिन
खोखलेपन का बाजार
तरासे जा रहें हैं
बाज़ार के द्वारा
नये नये नमूने
जो आकर्षित कर सके
नई आवकों को
विस्तारित होता जा रहा है
समाज एक एक कस्ता हुआ
अपने अपने अंदाज में
क्षण प्रति क्षण
रिक्तता को ओढता हुआ
लगातार बढ़ रहा है
बाज़ार की ओर
विस्तारित होता जा रहा है
वेपरवाह समय की भांति
देश के कर्णधार युवा
झूठें दिखावे के साथ
हकीकतों को नज़रअंदाज कर
घटिया सामग्री से
निरन्तर बिछते जा रहे हैं
उसकी ओर
विस्तारित होता जा रहा है
समाज का प्रत्येक धड़ा
दरकते घाट सा
नदी में मिलने को बेताब
भुनाना चाहता है
जिसे पूंजी का अदृश्य भेडियां
इसीलिए चकाचौध के बीच
दीमकों सा करता जा रहा है
उसे निरन्तर खोखला
विस्तारित होता जा रहा है
खोखलेपन का बाजार
जिसके रंगों को और अधिक
चटख बनाता है
आवारा पूंजी के हाथों
खेलता मीडिया
और उसके जोर जोर से
चीखतेे हरकारे
जिसे सहजता के साथ
स्वीकार कर लेती है
हमारी खोखली होती युवा पीढी
विस्तारित होते बाजार के सापेक्ष
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