प्रताड़ना के ताप में
उफनता हुआ संताप
विकरित हो गया तलाक में
मजहब के ठेकेदारी में
आजमाया सबने
अपने अपने अंदाज में
किसी ने दी दुहाइयां
किसी ने मजाक बनाया
स्थितियाँ थी
करती रहीं इंकलाब
इतने के बाद भी
बढ़ता रहा विवाद
कोई रसूल के नाम पर
कोई नफ़रत के नाम पर
हर कोई करता रहा
रोजगार
न उनसे था मतलब
न इनसे था कोई मतलब
किन्तु हमदर्द के नाम पर
वफा की बेचते रहे
खाँटी अल्फाज
मतलब साफ़ था
अपने अपने खुदाओं के
नाम पर शोरगुल करना
मात्र काम था उनका
स्त्री तो स्त्री थी
सहती रही
पुरुष का सभी अंदाज
प्रताड़ना के ताप में
उफ़नता हुआ संताप
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