Saturday, 26 November 2016

*****वे सपने बेचते हैं*****

वे बेचते है सपने
खत्म होते लम्हों के
दम तोड़ती आशाओं के
राफ्ता राफ्ता रेंगती
जिन्दगी के
वे बेचते हैं सपने
अपने पराये के
छुआछूत के अभिशाप के
अमीरी गरीबी के अन्तर के
कुआँ और खाई के
दुःख और सुख के
वे बेचते हैं सपने
अपने ही लाभ के
जिससे तुम्हे दिया जा सके
पुनः पुनः धोखा
और उलझाया जा सके
मायावी उलझन में
शायद तुम समझ सको कभी
मेरी बात को
क्योंकि सपने होते ही हैं
सिर्फ देखने के
अनुभव करने के
न कि हासिल करने के

No comments:

Post a Comment