Monday, 7 November 2016

गुलमोहर का फूलना अकस्मात नहीं था न ही प्रकृति का कोई वरदान था बाल्कि उसका फूलना आक्रोश था उन्मादी सूर्य के प्रति एक दृढ अवलम्ब था आशा की डूबती किरण के प्रति उसका फूलना तपिस से दुलकते आंसुओं के प्रति एक शांत्वना थी गुलमोहर का फुलना अकस्मात नहीं था बल्कि कोयल के राग का प्रेम आलाप था जो कौओं की हंसी के विरुद्ध एक उद्घोस था जो हर युद्ध की शुरुआत से पूर्व द्वारपालो द्वारा बजाया जाता है

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