नीली फ्रांक वाली
लड़की एक
खिलखिलाती धूप सी
झांक रही थी
वातायनों से बार बार
बच गया हो जैसे कोई
नवल पत्ता
आखिरी अवशेष
रह गया जो झड़ने से
पतझर में शेष
करता हो जैसे अब भी
इंतजार वह
खुद की बारी का
धूप के महीन
कतरन सी
चिलक रही वह
शाख के बीच
भटके राही सा
अलमस्त अटका
उसके पथ का रथ
चिपका हो जैसे
मकड़ी के जालों सा
दीवारों का जर्जरपन
टूट चुकी है उसके ख्वाबों की
पगडंडी
स्वर विश्रंखलित हुये
राहों की उसके
भग्न हुये जाग्रित उसके
स्वप्न
भारित यात्राओं के फूल
दे रहे उसके मन को शूल
विचलित हुआ है मन
उसका आज
पर आशाओं के हरसिंगार
खिले
ठोकरों से मरहम ले
खिल उठे जीवन के राग
करते थे वे जीवन में
सुख का संचार
Wednesday, 23 November 2016
*****नीली फ्रांक वाली लड़की*****
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