Sunday, 30 June 2019

*****माफ करना बिटिया!*****

माफ करना
बिटिया !
उनके शब्दों जैसे
मोहपास
नहीं मेरे पास
जो पक्ष में खड़े हो सकें
दूषित होने के बावजूद
न ही
थोथे शब्दों का सशक्त
समूह ही है
संवेदनाओं को व्यक्त करने हेतु
जाति धर्म के मोटे चश्मे भी
नहीं है
जिससे गढ और पढ सकूँ
नवीन मायाजाल
और आँसुओं की जगह
भर सकूं
जहर का गुबार
सत्य के स्थान पर
लिख सकूं
असत्य से युक्त
कहानियों के शब्द
कलंक की जगह
लिख सकूं
उज्जवल अल्फाज
माफ करना !
बिटिया
मैं नहीं बन सकता
किसी हिंसक भीड़ का
हिस्सा
मेरी आंखों का पानी
अभी भी शेष है
संवेदनाओं के सस्वर नाद
अभी जीवित हैं
मैं अपने ऊबडखाबड़
शब्दों के साथ
जिन्दगी की अन्तिम सांस तक
ललकारता रहूंगा
कायरों को
उनके गुनाहों के लिए

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