हमें गुजारा जा रहा है
आपातकाल के कठिन दौर से
छीने जा रहें हैं
धीरे धीरे
हमारे सभी अधिकार
मसलन अभिव्यक्ति,
प्रतिरोध, और जीवित रहने के
हमारी प्रतिबद्धताएं
विवश है
स्वयं को गिरवी रखने के लिए
यद्यपि असहमितियों के बीच
फेंके जा रहें हैं
चाँदी के जूतों के
एवज में सहमति के
खनकते कुछ चिल्लर
समानता और समग्रता के नाम पर
निर्मित की जा रहीं हैं
कुछ अधूरी परिभाषाएं
और परोसी जा रहीं हैं
नवीनता के रूप में
नये रंग रोगन के साथ
जिन्हे स्वीकारा जा रहा है
जबरन थोपे गये
आपातकाल की तरह।
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