Sunday, 16 June 2019

****वे जो पापकार्म खाते हैं****

वे जो पापकार्न खाते है
किसी मासूम के
क्यों कहा जाय?
किसी अमीर के साथ होने वाली
दुर्घटना पर
निकालते है कैडिल मार्च
सांझ ढलते ही
ठंडा पड़ जाता है
जिनका आक्रोश
और कर लेते हैं समझौता
उन्ही के रहनवारों से
जिनके द्वारा दिये जाते हैं
ऐसे घटनाक्रमों को
अंजाम
वे जो पापकार्न खाते हैं
शाम होते ही गटक जाते हैं
मदिरा की घूंटों के साथ
सुबह के किये गये
अन्याय और भूल जाते है
कैण्डिल मार्य के वजूद को
क्योंकि होते हैं ऐसे लोग
अनाम भीड़ का
सिर्फ एक भाग
समय के साथ जो बिखरकर
खो जाती है
अपने अस्तित्वहीन वजूद में
जिसका आदि और अंत
टिका होता है
आंच के आधार पर
जो एक दिन उन्हे भी
खत्म कर देती है
भुट्टे से बने पापकार्न की तरह

No comments:

Post a Comment