आज भी!
चली जाती हैं चालें
दांव में आज भी
लगाई जाती है
एक स्त्री की कीमत
पितामह आज भी दिखते है विवश
और लाचार होती हैं वधुएंं
नंगा करते हुए
दुःशासनों के समक्ष
यद्यपि आज बदल चुका
जुएं का तरीका
कल तक युधिष्ठिर
हारता था जुएं में एक स्त्री को
और स्त्रियां आज खुद हारती हैं
अपना दांव
शकुनियों के हाथ
जिसे नवाज़ दिया जाता है
आधुनिकता के नाम से
और आंसू बहाने वालों को
पुराने ख्यालात से
यही आज के समय का
नंगा सच है
जिसे अभी और नंगा किया
जाना बाकी है
क्योंकि समय के साथ ही साथ
चलता रहता है
द्यूत क्रीड़ा का घृणित खेल
जिसके मायावी पांसे फेंकता है
समय का शकुनि
और पराजित होता है
हांसिये पर खड़ा युधिष्ठिर I
Thursday, 20 June 2019
****हांसिये पर खड़ा युधिष्ठिर****
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