Sunday, 30 June 2019

****एक आदमी****

एक आदमी
उमड़ते घुमड़ते
बादलों को देखकर
छाते की मरम्मत
करवाता है
नये कपड़ों को
सहेज कर रखने का
इंतजाम करता है
पुराने कपड़ों को 
भीगने पर पहनता
कूड़े से खचाखच भरी
नालियों की दुर्दशा के लिए
सरकारी तन्त्र को
दोषी ठहराता है
पौधे लाकर 
उम्मीदों की नर्सरी लगाता है
बारिश न होने पर
चिल्ला चिल्लाकर
ईश्वर को गारियाता है
किन्तु वही आदमी
मतलब निकलने पर
भूल जाता है
अपने आदमी होने का
मतलब
घटाओं के घिरने
और बादलों के गड़गड़ाने पर
एक आदमी बार बार
यही करता है

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