Tuesday, 3 January 2017

****लौटना****

आसान नही होता
लौटना
क्षेत्र चाहे कोई भी हो
चाहे रिश्तों की कैफियत हो
या आचरणों की जुम्बिस हो
या फिर अनुभवो की
कसमकस हो
इसके अतिरिक्त
और भी बहुत कुछ
अंधेरों की सांठ-गांठ हो
या मुखौटो में छिपा
सच हो
चूल्हों की चींखती
राख हो
या फिर निवालों की
अदला बदली
या फिर वक्त के
बदलाव के साथ
जश्न मनाने में मशगूल
खामोश आवाजें हों
जो फिर से बेताब हों
वापस लौटने को
शायद उसे इस बात का
एहसास था
फिर से लौटना
उतना आसान न होगा
जितना उसने सोचा था
यही हकीकत उसकी
चिन्ताओं को
कर रहीं थी बर्धित ।
इसीलिए वह मुकर रहा था
बार बार खुद के ही
वादों से

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