पूस के दिन की तरह
दिखता और छुपता
शबनम के आकर्षण में
सद्य: स्नात
भोर के साथ सुर मिलाते
पंक्षी की तरह
अपने डैनों को फैलाता
चहलकदमी करता वह
सूर्य की प्रथम किरण के
आगमन पर
कोर्टरों में झाँकते
जीवन सा
आज भी वह
कर रहा है इंतजार
पतझड़ में तवाह हो चुके
विहान में
बसन्त आने का
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