तलाश ही लेते हो
नये ठिकाने चाणक्य
क्योंकि तुम्हारे पास होता
चन्द्रगुप्त जैसा हथियार
तुम आज भी सीचते हो
मठा से कुशों की जड़े
और रोपते हो
जातिभेद की पौध
आज भी तुम उजाड़ते हो
गुलजार बस्तियां
तलाश ही लेते हो
नये ठिकाने
करवाने को अपनी
जय जयकार
फेंक देते हो
अशरफियों के नूतन हार
छोड़ आत्मसम्मान
बांध पैरों में घुंघरू
नाचने लगते है
चारण भाट
तलाश ही लेते हो
नये ठिकाने चाणक्य
ढांप देते हो आंतों की भूख
सरेआम लुटी हुई
अबला की आबरू
सैनिकों के कटे हुए
सरों की पीड़ा
पढने की चाहत
और अपराधियों के
अनगिनत अपराध
काढ़ लेते हो
सर्वग्यता का सुनहरा मुखौटा
फिर शुरू होता है
तुम्हारा असली खेल
तलाश ही लेते हो
नये ठिकाने चाणक्य
Thursday, 26 January 2017
****तलाश.ही लेते हो****
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