Sunday 22 January 2017

*****झूठे सपने*****

मुझे मालूम है
वे गढ रहे हैं
नई भाषा और
भाषा के नये शब्द
क्योंकि वे मानते हैं
पुरानी भाषाएं
और उनके शब्द
नाकाफी है
उनके उद्देश्यों की
पूर्ति के लिए
क्योकि वे थाम लेते हैं
गाहे बेगाहे
विरोधियों का दामन
और पूरी शिद्दत के साथ
झुठला देते हैं
भावनाओं में रंगे पुते
छद्म को
और वे साधना हैं
हकीकत को
भाषा के दामन में ढांप
अपनी मंशा
उन्हे पता है
नई भाषा और शब्दों की
गोलन्दाजी
नहीं समझ पायेंगी
उनकी चाल और चरित्र का
विद्रुप चेहरा
जिससे वह आसानी से दे
सकता है
चमकती आंखो को
झूठे सपने

No comments:

Post a Comment