यार तुम कैसे जी
लेते हो
घुटन भरे जीवन को
जिसमें अक्सर चलना
पड़ता है
झूठ की डोर थामकर
बात बात पर उठाने
होते हैं जोखिम
झूठ को सच
साबित करने के लिए
आखिर कैसे संभाल
लेते हो तुम
झूठ की फौज के साथ
मोर्चा
और भेद लेते हो
सच के मजबूत
किले को
दहशत से आक्रान्त
चेहरे
और उस पर उभरी
चिन्ता की लकीरों के
मध्य किस प्रकार
बिठा लेते हो
सामंजस्य
छिपा जाते हो सारे दर्द को
बिना सांस थामें
चार के फेर में तुम्हारे चालीस
भी आ जाते है
शांशत में
फिर भी तुम बेखौेफ
अपने कार्य में रहते हो
व्यस्त
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