Saturday 31 December 2016

****रंगमंच सा सज चुके हैं हाट****

रंगमंच सा सज चुके हैं
हाट
उत्सुक दिखते ता-था -थैया करने को
सरोकार व स्वार्थ की साजिशें
संयम खो देते अचबक के बीच
विवश अधिकार
पिघलना चाहती है
रिश्तों की तासीर
चाशनी की मिठास के अनुरूप
और बच जाता रिश्तों का वजूद
एक बार पुनः टूट की परिणति से
और बच जाता है
पुनः रिश्तों का आपसी
विश्वास व सौहार्द्र

No comments:

Post a Comment