Wednesday 14 December 2016

****हत्याओं का कारवां*****

एक के बाद एक
हत्याओं का कारवां
उधड़ती परतों सा
बढता गया
सूखते गये बहते जख्म के
कतरे
बढ रहा था एक तरफ
मातम का आलम
और एक तरफ निर्लज्ज
हंसी के ठहाके
देख रहा था समय भी
स्तब्ध हुआ सा
मातम और हंसी के
दरम्यान खिचे पालों की
हकीकत
जिन्हे बताया जा रहा था
एक को दूसरे से श्रेष्ठ
अपने अपने गोल बनाने की
तैयारियां क्रम जोरों पर था
काश ! दोनो समझ पाते
एक दूसरे की विवशताएं
और समय का तकाजा

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