तुम्हारी रीति तुम्हारी नीति
बना गई
शीत को भी पंगु
क्योंकि रीति और शीत का
छत्तीस का आकड़ा
जीवन की दशवन्ती में
चौखट की चीख
दन्त हो गये शूल
हैं जो सीधे खड़े
तुम्हारी रीति तुम्हारी नीति
बना गई
शीत को भी पंगु
उशीष पैतान का
जैसे नाता
रहते पास सदा
तुम चीन्हो उनके
भेद
वे खुद ही कर देगे
उसमेे छेद
उनका हर्ष और उनका रोदन
विषम नही सम है सम्बोधन
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