आखर ढलने से लेकर
आखर मिटने तक
एक सम्भावना रहती है
बरकरार
अक्षरों के साझी विरासत की
और वह लगातार बनती
बिगड़ती रहती है
इसी के साथ ऊंच-नीच
अमीर -गरीब,जाति-पाति,
धर्म-अधर्म, पाप - पुण्य
का भेद भी बनता और बिगड़ता
रहता है
और इसी बनाव बिगाड़ के साथ
शब्द धारण करता है
एक नये आखर का स्वरूप
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