वर्जनाओं के
विरुद्ध
तनी हुई मुट्ठियों में
अभी भी बची हुई है
इतनी सामर्थ्य
कि भर सके
तुम्हारे विरुद्ध
हुंकार
और दर्ज करा सके
अपना प्रतिरोध
यद्यपि तुम्हारी अकड़न को
यह स्वीकार नहीं होगा
बावजूद इसके
भिची हुई चबुरियां और
तनी हुई मुट्ठियां
कर देगी तुम्हारे विरुद्ध
इकबाल बुलन्दी का
जयघोष
तुम्हारी क्रूरताएं चाहकर भी
रोक पाने में होंगी
असफल
हक के लिए बढते हुए कदम
अब फैसला तुम्हारे
हाथ में है
कि बचे हुए समय में
जमीनदोज होती
आस्मिताएं बचाने का
करते हो सफल प्रयास
या फिर घुट - घुटकर
दम तोड़ने के लिए
छोड़ देना चाहते हो उन्हे ।
प्रद्युम्न कुमार सिंह
Friday, 12 October 2018
***** वर्जनाओं के विरुद्ध******
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