Tuesday, 30 October 2018

*****सरदार !*****

सरदार !
कैसे बांधा जा सकता है ?
तुम्हे सीमाओ की परिधि में
सीमाओं से भी
बहुत ऊंचा हैं तुम्हारा कद
आखिर तुम कैसे समा सकते हो ?
बुतों की परिधि में
जबकि तुम्हारी आवाज
आज भी बसी हुई है
करोड़ों हृदयों में
किसी एक प्रतिमा में
नहीं रखा जा सकता है जिसे सुरक्षित
हक-औ'-हुकूक के लिए
उठी हुंकार आज भी
बनी हुई है
नवयुवकों के लिए
प्रेरणास्रोत
किन्तु सरदार ! आज
तुम्हारा बुत  रौंद रहा है
अस्तित्व
क्या तुम अब भी लड़ सकोगे
उसी मज़बूती के साथ
अपने ही बुत से
या फिर बूढे हो इंकार कर दोगे
दम तोड़ते अपने ही विचारों को
को पहिचानने से
नहीं नहीं सरदार तुम ऐसा नही
कर सकते
क्योंकि हमें उम्मीद है
तुम कल के सरदार की तरह
आज भी सरदार हो
जो फर्ज़ के लिए हमेशा डटा रहा
देश के एकत्रीकरण में ।

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