क्या सच में अंधेरा
उतना ही भयावह है
जितना उसके बारे में
कहा और सुना जाता है
और उजाला
उतना ही उजला है
जितना उसके बारे में
प्रचारित और प्रसारित किया जाता है
शायद हम गुमराह हैं
अंधेरा न तो उतना
भयावह होता है
जितना कहा और सुना जाता है
और उजाला
उतना भी उजला नहीं होता
जितना प्रचारित और प्रसारित किया जाता है
वरन उजाले से भी अधिक
वफादार होता है अंधेरा
जो साये की तरह रहता है
ताउम्र साथ
तुम्हारे अस्तित्व की तरह
अनाम सहचर सा
तुम्हारे सभी काले पक्षों को
अपने में मिला कर
दिखने लगता है काला
Tuesday, 31 January 2017
****अंधेरा****
Thursday, 26 January 2017
****तलाश.ही लेते हो****
तलाश ही लेते हो
नये ठिकाने चाणक्य
क्योंकि तुम्हारे पास होता
चन्द्रगुप्त जैसा हथियार
तुम आज भी सीचते हो
मठा से कुशों की जड़े
और रोपते हो
जातिभेद की पौध
आज भी तुम उजाड़ते हो
गुलजार बस्तियां
तलाश ही लेते हो
नये ठिकाने
करवाने को अपनी
जय जयकार
फेंक देते हो
अशरफियों के नूतन हार
छोड़ आत्मसम्मान
बांध पैरों में घुंघरू
नाचने लगते है
चारण भाट
तलाश ही लेते हो
नये ठिकाने चाणक्य
ढांप देते हो आंतों की भूख
सरेआम लुटी हुई
अबला की आबरू
सैनिकों के कटे हुए
सरों की पीड़ा
पढने की चाहत
और अपराधियों के
अनगिनत अपराध
काढ़ लेते हो
सर्वग्यता का सुनहरा मुखौटा
फिर शुरू होता है
तुम्हारा असली खेल
तलाश ही लेते हो
नये ठिकाने चाणक्य
Sunday, 22 January 2017
*****झूठे सपने*****
मुझे मालूम है
वे गढ रहे हैं
नई भाषा और
भाषा के नये शब्द
क्योंकि वे मानते हैं
पुरानी भाषाएं
और उनके शब्द
नाकाफी है
उनके उद्देश्यों की
पूर्ति के लिए
क्योकि वे थाम लेते हैं
गाहे बेगाहे
विरोधियों का दामन
और पूरी शिद्दत के साथ
झुठला देते हैं
भावनाओं में रंगे पुते
छद्म को
और वे साधना हैं
हकीकत को
भाषा के दामन में ढांप
अपनी मंशा
उन्हे पता है
नई भाषा और शब्दों की
गोलन्दाजी
नहीं समझ पायेंगी
उनकी चाल और चरित्र का
विद्रुप चेहरा
जिससे वह आसानी से दे
सकता है
चमकती आंखो को
झूठे सपने
Thursday, 19 January 2017
****बसन्त आने का****
पूस के दिन की तरह
दिखता और छुपता
शबनम के आकर्षण में
सद्य: स्नात
भोर के साथ सुर मिलाते
पंक्षी की तरह
अपने डैनों को फैलाता
चहलकदमी करता वह
सूर्य की प्रथम किरण के
आगमन पर
कोर्टरों में झाँकते
जीवन सा
आज भी वह
कर रहा है इंतजार
पतझड़ में तवाह हो चुके
विहान में
बसन्त आने का
Tuesday, 17 January 2017
****चीथड़ों में लड़की****
चीथड़ों में लड़की
या यूं कहें
उन्ही में गड्ड मड्ड
शीत में ठंड से
खुद को खुद में
समेटती
रहने के ठौर से
अलगाई गई
पेड़ से टूटी डाली सी
अस्त वयस्त वह
कौन सा होगा उसका घर ?
वह क्यों सड़क पर ऐसे
सोती है
क्या बेटी बचाओ का
हिस्सा है वह
या फिर मात्र फीता
काटकर
फोटू सोटू खींचकर
बाहवाही पाने
का नायाब नुस्खा
क्योंकि वह सब जगह है
भाषणों में प्रवचनों
खुदा की नियामत में
ईशू के गिरजाघरों में
मंदिरों के परकोटे मे
भिखारियों के झुण्ड में
श्रमिकों की रगों में
किसानों के खेत में
मां की मजबूर आँख के
कोरों में
लेकिन वह नहीं है
हकीकत के मानदण्डों में
इन सबसे बेखौफ वह
नींद में बुदबुदाती है
और मुस्कुराती है
क्योकि उसे मालूम है
यह जो बेचारगी के
आंसू लिये लोग हैं
इनकी बेचारगी
और उसकी हकीकत में
कोई तालमेल नही है
Monday, 16 January 2017
****चोरी हो गये हैं बापू के तीन बंदर****
चोरी हो गये हैं
बापू के तीन बन्दर
एक का कान काटा गया
एक का मुंह खोला गया
एक की आँख खोली गई
अब वे पूरी तरह आजाद हैं
बोलने सुनने
और देखने के लिये
उनके लि अब मनाही नही है
माकूल जवाब देने की
अब उन्हे न तो
कोई टोकता है
ना ही रोकता है
ना ही घूरता है
कहीं भी आने जाने
खाने पीने और सोने से
अब वे आसानी से जा
सकते हैं
माल रेस्तरां और सिनेमा
और मिल बैठ कर सकते
मन की बाते
देख सकते है खूबसूरती
और बांध सकते हैं
उनकी तारीफों के पुल
क्योकि अब वे पूरी तरह
मुक्त हो चुके
समय से पहिचान से
और कर्तव्यों के बंधन से
Friday, 13 January 2017
****विद्रोह की संभावनायें****
आखिर हर बार
हम क्यों काट देना चाहते हैं
पतंग
और कतर देना चाहते है
उड़ने वाली उसकी
उमंगों के पर
जो बेताब हैं
आकाश का कोना कोना
स्पर्श करने को
क्या हम उड़ानों से
ऊब चुके है
या फिर हमे पसन्द
नहीं है
पतंगो की इतनी
स्वच्छन्दता
इसीलिये वह छीन लेना
चाहते हैं
औरों के हिस्से का आकाश
या फिर हम नहीं चाहते बाँटना
खुशियों के चन्द कतरे
या फिर आजादी से
अधिक हमे पसन्द है
गुलाम बनाये रखना
जिससे खत्म की सकें
विद्रोह की सारी संभावनाएं
Thursday, 12 January 2017
****खुशियों के बीच****
खुशियों के बीच सदा
खड़ी रहती हैं
पेंचोंखम की मजबूत दीवारें
जो खरीद लेना चाहती है
खुशियां और खुशियों के
ठौर
वे रोक लेना चाहती है
नजदीक आती खुशियों के
प्रत्येक क्षण
किन्तु उन्हे खोज ही लेते है
बच्चे ,गुब्बारे
और गुब्बारे वाले
बावजूद इसके छीनने पर
आमादा रहती है
क्रूर पवन
जो मिटा देना चाहती है
तीनों का वजूद
क्योकि खुशियों के बीच सदा
खड़ी रहती हैं
पेंचोंखम की मजबूत दिवारें ।
Wednesday, 11 January 2017
****चार के फेर में चालीस****
यार तुम कैसे जी
लेते हो
घुटन भरे जीवन को
जिसमें अक्सर चलना
पड़ता है
झूठ की डोर थामकर
बात बात पर उठाने
होते हैं जोखिम
झूठ को सच
साबित करने के लिए
आखिर कैसे संभाल
लेते हो तुम
झूठ की फौज के साथ
मोर्चा
और भेद लेते हो
सच के मजबूत
किले को
दहशत से आक्रान्त
चेहरे
और उस पर उभरी
चिन्ता की लकीरों के
मध्य किस प्रकार
बिठा लेते हो
सामंजस्य
छिपा जाते हो सारे दर्द को
बिना सांस थामें
चार के फेर में तुम्हारे चालीस
भी आ जाते है
शांशत में
फिर भी तुम बेखौेफ
अपने कार्य में रहते हो
व्यस्त
Thursday, 5 January 2017
****क्या सच में आइना बोलता है?****
क्या सच में आइना
बोलता है ?
या फिर लोगों का
है फितूर
आइनों के बारे में
मैने तो आज तक नही देखा
ऐसा आइना
वाचालों सा जो करता हो
बात
दिलदारों सी करता हो
दिल्लगी
मसीहों सी करता हो
मसिहाई
इन सबसे झतर
एक बात है जरूर
आइना दिखाता है आइना
अब चाहे इसको बोलना कहो
या फिर भाषण देना
यह आपकी मर्जी पर
निर्भर है
पर मैं अब भी तुम्हारी बात से
असहमत हूँ
क्योंकि आइना आइना होता है
जो अपने अन्दर कई आइने
रखता है समेट
यकीन न हो तो जाकर
देख लो आइना
खुद ब खुद पता चल जायेगा
उसकी हकीकत का
Tuesday, 3 January 2017
****लौटना****
आसान नही होता
लौटना
क्षेत्र चाहे कोई भी हो
चाहे रिश्तों की कैफियत हो
या आचरणों की जुम्बिस हो
या फिर अनुभवो की
कसमकस हो
इसके अतिरिक्त
और भी बहुत कुछ
अंधेरों की सांठ-गांठ हो
या मुखौटो में छिपा
सच हो
चूल्हों की चींखती
राख हो
या फिर निवालों की
अदला बदली
या फिर वक्त के
बदलाव के साथ
जश्न मनाने में मशगूल
खामोश आवाजें हों
जो फिर से बेताब हों
वापस लौटने को
शायद उसे इस बात का
एहसास था
फिर से लौटना
उतना आसान न होगा
जितना उसने सोचा था
यही हकीकत उसकी
चिन्ताओं को
कर रहीं थी बर्धित ।
इसीलिए वह मुकर रहा था
बार बार खुद के ही
वादों से