Wednesday, 27 March 2019

**** क्यों मिलते हो*****

तुम !
क्यों मिलते हो
बोझिल सांसों के साथ
और करते हो
अपने मन की बात
क्या तुम्हे अब नहीं रहा
खुद पर भरोसा
या फिर तुम समझ
चुके हो
अपनी फ़िरकापरस्ती
और घबराहट में
चल पड़े हो मिलने
या फिर डगमगाने लगा है
तुम्हारा यकीन
अपने द्वारा खड़े किये गये
अवरोधों से
जिन्होने तुम्हे मज़बूर कर दिया है
तिलमिलाने के लिए
और तुम निकल पड़े
निबटने को
लोटा कमण्डल के साथ
क्या तुम्हारे देवता ने
कुछ ज्यादा मांग लिया
और असहाय दिखने लगे तुम
अब बीत चुका समय
और जाने जा चुके हैं
तुम्हारे रहस्य
अब तुम्हे छोड़नी होंगी
बुढ़ाती हुई सभी बातें
तुम्हे शीघ्र खोजने होगे
नये तरीके
और ईजाद करनी होंगी
नई राहें
जिससे बचाई जा सके
टूटती हुई
उखड़ती सांसे

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