किंवदन्तियों में
आज भी महफूज है
कृष्ण का आंसुओं से
बालसखा दरिद्र
सुदामा के
चरणों का धोया जाना
यह मिथ जरूर है
पर हकीकत के बहुत
करीब था
राजा का प्रजा के
दुःखों से एकाकार
होने की
किन्तु कुछ आत्ममुग्धता के
शिकार मानुष
करते हैं
महत्वाकांक्षाओं की
पूर्ति हेतु
पग प्रक्षालन
और उनके चारण लोग
बताते है
उसे कर्तव्य की जगह
उनका अनूठा कार्य
जिससे सहानुभूति पाकर
भुनाया जा सके
मिथ की भांति
भगवान बनने के
स्वांग को
आखिर पैर घुलने
ताली बजवाने से
समस्यायें
खत्म नहीं हो जाती
न ही खत्म होती हैं
समस्यायें
कुढ़न होती है
ऐसे चालबाजों से जो
तुम्हारे नाम को
भुनाने का करते है
प्रयत्न
तुम्हारी दलीलों से
तुम्हारे अन्दर छिपे
दुर्दान्त भेडिये की
गन्ध आती है
जिसकी नियति ही
धोखा देने की
होती है
Monday, 4 March 2019
**** किंवदन्तियों में***"
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