Wednesday, 27 February 2019

**** जब हम अधिक होने लगते हैं***

होने लगते हैं
जब हम अधिक सभ्य 
और आधुनिक
भूलने लगते हैं
अपनी मातृभाषा 
और उसके सरोकार
और हम करने लगते है
स्थापित उसके स्थान पर
प्रतिस्थापनी भाषा
ठीक वैसे ही 
अच्छे जलस्रोत की आस में
नदी के उद्गम को छोड़ 
चले जाते है 
हम उससे बहुत दूर
क्योंकि यह भी सच है
अनुदित नहीं होती 
मातृभाषाएँ 
वरन अन्तस की आवाज 
बन प्रसरित होती है 
सहज ही लोक तक
जिसे बोलने और समझने में 
महसूस किया जाता है गर्व
यद्यपि समस्याओं को जानने
समझने के लिये आवश्यक होता है
उसका बुनियादी ढांचा 
उसके लिए विद्वता से अधिक
आवश्यक होता है 
व्यकितयों का मौलिक होना 
जिसमे टिका होता है
किसी भी भाषा का 
मज़बूत एवं टिकाऊ वितान

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