पत्थर नहीं
तुम्हे दूब बनना है
जिसकी जड़ों में
सात गाठें होती हैं
अगर एक भी
शेष रह जाती है
तो अषाढ का
पानी पड़ते ही
हरिया जाती है
कहते हैं !
पताल में होती है
उसकी जड़
और चाहकर भी
कोई अन्त नहीं
कर सकता उसका
कितने युगों से
एक से बढ़कर एक
उन्मूलन अभियान
उसके विरुद्ध चलाये गये
पर हर बार बेकार
साबित हुए
पत्थर नहीं
तुम्हे दूब बनना है
क्योंकि पत्थर
अपनी अकड़ से
टूट जाता है
किन्तु दूब टूटकर भी
नहीं टूटता है
फिर से उसी तरह
पत्थर पर उगता है।
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