खंड खंड
पाषंड
तोड़ते़ें दिलों के
निश्छल प्रेम
सिसक रहीं
अबलायें बेजुवान हो
जनों पर अत्याचार
बेसुमार
ख्वाबों के कत्ल
हुये बेरहमी से
मंदिर मस्जिद में
खोजते
धर्म धतूरे
हमने देखे जिन्दगी के
रञ्जो अलम बहुतेरे
मानव को मानव से
पहिचान छुपाये
फिरते देखे
समझ न पायें
फिर भी
पत्थरों में भगवान
ढूंढते देखे
लोभ मोह की बिसात पर
शह मात के खेल खेलते देखे
राजनीति में पिलती हैं
अब ओछी बातें
पोशाकों ने ओढी वहशी
चूनर
दर को दीवार बनाते
देखा
अपनों से बेगानों सा
पेश आते देखा
भय विस्मय की
चलती दुकानदारी देखा
जीवन से पहले जीवन की
लाचारी
सेवा की जगह मेवा का
रेला देखा
किस किस को समझाऊँ
इससे अधिक मैं भी
समझ न पाऊँ
अब तुम्ही बताओ
भ्राता
क्या जन क्या सेवक
क्या दाता देखा ?
Monday 27 March 2017
****खंड खंड पाषंड ****
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment